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________________ पत्रव्यवहार । १२५ छप्पय ( अन्तपिका). काम नाम कहु कौन, कूपमें किमि जल आवै । वीच जवर्ण गजेन्द्र, क्षीणवय नाम कहावै ॥ जहर दूसरो नाम, चीरकी लखि रंची()भनि । जलज होय किहि थान, सष्टि संहारकको गनि । १ कहु अंतिम यतिके वरणको, कमल थापि उत्तर सुधर । वृन्दावन' केलिनिवास जो, काशी कुंजगली सहर ॥ . दोहा। धर्मप्रीतिकरि फेरि दल, लिखियौ चतुर सुजान । बुद्धि तुम्हारी है बड़ी, यह जानी अनुमान ॥ १२ ॥ चौपाई। काशीनाथ मूलशशि नाम । नंतराम औ आरतराम ॥ घरमचन्द पुनि गोकुलचन्द। इन्है आदि वृषधर सुखकन्द ॥ तिनको करिये शिष्टाचार । जयपुरतें जयचन्द जुहार ॥ । पहुंचों तिन ढिग दल आधार । पढौ सबै मिलि शुद्ध उचार ॥ दोहा। नंदलालकी सबनिको, यथायोग्य वचसार । __ पढ़ियो प्रीतिसमेत तुम, सजनता हितकार ।। १ इस छप्पयके अन्तमें जो "काशी कुंजगली शहर" पद है, उसके प्रत्येक अक्षरके साथ अन्तका र जोडनेसे क्रमसे सब प्रश्नोंका उत्तर निकलता है जैसे कार (कार्य), शीर (पानीके सोता), कुंर, जर, गर, लीर सर, हर।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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