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________________ श्रावश्यक के पर्याय . ८७ ध्रुव कहलाता है। अस्तु, जो कम और कर्मफलस्वरूप संसार का निग्रह करता है, वह ब्रुव निग्रह है। ____४. विशोधि-कर्ममलिन आत्मा की विशुद्धि का हेतु होने से आवश्यक विशोधि कहलाता है। ५. अध्ययन पटकवर्ग-आवश्यक सूत्र के सामायिक आदि छह अध्ययन हैं, अतः अध्ययन षटक वर्ग है। ६. न्याय-अभीष्ट अर्थ की सिद्धि का सम्यक् उपाय होने से न्याय है । अथवा आत्मा और कर्म के अनादिकालीन सम्बन्ध का अपनयन करने के कारण भी न्याय कहलाता है । आवश्यक की साधना आत्मा को कम-बन्धन से मुक्त करती है। ७.अाराधना-मोक्ष की आराधना का हेतु होने से प्राराधना है।। ८. मार्ग मोक्षपुर का प्रापक होने से मार्ग है। मार्ग का अर्थ उपाय है। उपयुक्त पर्यायवाची शब्द थोडा-सा अर्थ भेद रखते हुए भी मूलतः समानार्थक हैं।
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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