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________________ . . , आवश्यक का निर्वचन । . . ५.. (२) गुणैर्वा आवासक = अनुरजकं वस्त्रधूपादिवत् । श्रावस्सय का ' सस्कृत रूप जो श्रावासक होता है, उसका अर्थ है-'अनुरंजन करना। जो आत्मा को ज्ञानादि गुणों से अनुरंजित करे, वह श्रावासक। - (१) गुणैर्वा प्रात्मानं पावासयति-आच्छादयति, इति भावासकम् । वस् धातु का अर्थ आच्छादन करना भी होता है । अतः नो ज्ञानादि गुणों के द्वारा श्रात्मा को आवासित - श्राच्छादित करे, वह श्रावासक है। जब आत्मा ज्ञानादि गुणों से आच्छादित रहेगा तो दुर्गुण-रूप धूल श्रात्मा पर नहीं पड़ने पाएगी। श्रावस्सय 'आवश्यक' के ऊपर जो निर्वचन दिए गए हैं, उनकी श्राधार-भूमि, जिन भद्रं गणी क्षमाश्रमण का विशेषावश्यक भाष्य है। जिज्ञासु पाठक ८७७ और ८७८ वीं गाथा देखने की कृपा करें।
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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