SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सच्चे सुख की सोध यो चै भूमा तत्सुखं . नाल्पे सुखमस्ति । (छान्दोग्य ७१ २३ । १) हाँ, तो क्या साधक सच्चा सुख पाना चाहता है ? और चाहता है सच्चे मन से, अन्दर के दिल से ? यदि हाँ तो आइए मन की भोगाकांक्षा को धूल की तरह अलग फैक कर त्याग के मार्ग पर, वैराग्य के पथ पर ! ममता के क्षद्र-घेरे को तोडने के बाद ही साधक भूमा होता है, महान् होता है, अजर अमर अनन्त होता है। और वह सच्चा सुख भी पूर्ण रूपेण यहीं इसी दशा में प्राप्त होता है ! भूले साथियो! अविनाशी सुख चाहते हो तो अविनाशी आत्मा की शरण में श्राओ यही सच्चा सुख मिलेगा । वह आत्मनिष्ठ है, अन्यत्र कहीं नहीं।
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy