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________________ श्रमण-सूत्र [आध्याय पं० मुनि श्री अमरचन्द्र जी महाराज ] श्रमण सूत्र (प्रतिक्रमण ) साधु जीवन की अमून्य वस्तु है। प्रातःकाल और सायं काल उभय वेला में प्रति दिवस प्रतिक्रमण करना साधु का परम कर्तव्य है । परन्तु जैसी दुर्दशा प्रतिक्रमण के पाठो की हुई है, वैसी सम्भवतः अन्य किसी ग्रन्थ की न हुई होगी। खेद है कि उस का शुद्ध पाठ भी तो अभी तक इस्त नही विया गया। और इस दिशा में अभी तक जो कुछ थोडा-बहुत प्रयास भी हुआ है, वह बिल्कुल अधूरा ही है। इस ग्रन्थ में शुद्ध मूल पाठ, विशुद्ध एवं रमणीय मूलार्थ एवं भावार्थ, संस्कृत प्रेमियों के लिए छायानुवाद और प्रत्येक पाठ पर विस्तृत भाष्य किया गया है। प्रारम्भ में भूमिका के रूप में एक विस्तृत बालोचनात्मक निबन्ध है, जिस में प्रतिक्रमण के सम्बन्ध में विस्तार से ऊहापोह किया गया है ! उपाध्याय श्री जी ने अपने विशाल अध्ययन, गम्भीर चिन्तन और अपने निजी अनुभव से ग्रन्थ को गौरवशाली बनाया है। ज्ञान-पीठ के अभी तक के प्रकाशनों में यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है और अपने ढंग का सब से निराला है । सुन्दर छपाई, सुन्दर जिल्द और मजबूत कागज पर छपा है। इस ग्रन्थ की पृष्ठ संख्या ६०० के लगभग होगी ।
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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