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________________ श्रावश्यक दिग्दर्शन के गद गुरु को वन्दन एवं उनसे प्रत्याख्यान कर लेना चाहिए । (6) अन्त मे सिद्ध स्तुति के द्वारा आवश्यक की समासि होनी चाहिए । ___ यह उत्तराध्ययन सूत्र कालीन संक्षिप्त विधि,रम्परा है । दुर्भाग्य से आज इतना गड-बड घोटाला है कि कुछ मार्ग ही नहीं मिलता है । कोन क्या कर रहा है, इस पर कहाँ तक टीका टिप्पणी की जाय ? प्रश्न आवश्यक अर्थात् प्रतिक्रमण किस समय करना चाहिए ? उत्तर-दिन की समाप्ति पर दैवसिक प्रतिक्रमण होता है और रात्रि की समाप्ति पर रात्रिक । महीने में दो बार पाक्षिक प्रतिक्रमण होता है, एक कृष्णपक्ष की समाप्ति पर तो दूसरा शुक्लपक्ष की समाप्ति पर । यह पाक्षिक प्रतिक्रमण पाक्षिक दिन की समाप्ति पर ही होता है प्रातः नहीं। चातुर्मासिक प्रतिक्रमण वर्ष मे तीन होते हैं, एक श्रापाढी पूर्णिमा के दिन, दूसरा कार्तिक पूर्णिमा के दिन और तीसरा फाल्गुन पूर्णिमा के दिन । यह प्रतिक्रमण भी चातुर्मासिक दिन की समासि पर ही होता है। सांवत्सरिक प्रतिक्रमण वर्ष में एक बार भाद्रपद शुक्ला पचमी के दिन सन्ध्या समय होता हैं। दिन की समाप्ति पर सन्ध्या समय किया जाने वाला प्रतिक्रमण दिन के चौथे पहर के चौथे भाग में', अर्थात् लगभग दो घडी दिन शेष रहते शय्याभूमि और उच्चार भूमि की प्रतिलेखना करने के पश्चात् प्रारंभ कर देना चाहिए। समाप्ति के समय का मूल पागम में उल्लेख नहीं है। परन्तु उपदेशप्रासाद आदि ग्रन्थों का कहना है कि सूर्य छिपते समय अथवा अाकाश में प्रथम तारक-दर्शन होते समय आवश्यक पूर्तिस्वरूप कहीं भी उल्लेख नहीं है, वहाँ तो छठे आवश्यक के रूप में ग्रहण करने योग्य तप के सम्बन्ध में विचार करने का विधान है। परन्तु साधक जब स्थूल हो गया तो चिन्तने जाता रहा, फलतः उसे लोगस्स का पाठ पकड़ा दिया । 'न' होने से कुछ होना अच्छा है। १. देखिए, उत्तराध्ययन २६ । ३८, ३६ ।
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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