SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० श्रावश्यक-दिग्दर्शन यदि शल्य से मनुष्य बिंधा हुआ है तो वह भाग-दौड मचायगा ही । ' र यदि वह अन्तर मे विधा हुश्रा वाण खींच कर निकाल लिया जाय, तो वह शान्ति से चुन बैठ जायगा । + - जो मनुष्य समस्त पापों को हृदय से निकाल बाहर कर देता है, जो विमल, समाहित, और स्थितात्मा होकर संसार-सागर को लॉघ जाता है, उसे ब्राह्मण कहते हैं। --तथागत बुद्ध ___ जो मनुष्य जितना ही अन्तर्मुख होगा, और जितनी ही उसकी वृत्ति सात्विक व निर्मल होगी, उतनी ही दूर की वह सोच सकेगा और उतने ही दूर के परिणाम वह देख सकेगा। कर्म दूषित हो गया हो तो ज्यादा घबराने की बात नहीं, वृत्ति दूषित न होने दो। वृत्ति को दूषित होने से बचाने का उपाय है मन को भी दोषों से बचाने का प्रयत्न करना । पाप को पेट में मत रख, उगल दे। जहर तो पेट में रख लेने से शरीर को ही मारता है, किन्तु पाप तो सारे सत्य को ही मिटा देता है। xxx . जहाँ गुप्तता है वहाँ कोई बुराई अवश्य है। बुराई को छिपाना, बुराई को बढाना है। विकार, चोरों की तरह, गाफिल मनुष्य के घर में ही सेंध लगाते हैं । जागरूकता उनके हमले से बचाव की सबसे बड़ी ढाल है। जिस प्रकार बहाज का कप्तान अपनी नोट बुक में यात्रा तथा
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy