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________________ मानव जीवन का ध्येय १५. दो टन अर्थात् ५४ मन वजन मे निकला! मनुष्य इस भीमकाय प्राणी के सामने क्या अस्तित्व रखता है ? वह तो उस वन मानुष के चॉटे का धन भी नहीं! और वह शुतुरमुर्ग कितना भयानक पक्षी है ? कभीकमी इतने जोर से लात मारता है कि आदमी चूर-चूर हो जाता है। उसकी लात खाकर जीवित रहना असंभव है। जब वह दौडता है तो प्रति घटा २६ मील की गति से दौड सकता है । क्या.आप में से कोई ऐसा मनुष्य है, उसके साथ दौड लगाने वाला। मनुष्य का जीवन तो अत्यन्त क्षुद्र जीवन है। उसका बल अन्य प्राणियो की दृष्टि में परिहास की चीज है । वह रोगो से इतना घिरा हुआ है कि किसी भी समय उसे रोग की ठोकर लग' सकती है और वह जीवन से हाथ धोने के लिए मजबूर हो सकता है ! और तो क्या, साधारण-सा मलेरिया का मच्छर भी मनुष्य की मौत का सन्देश लिए घूमता है। एक पहलवान बड़े ही विराट काय एवं बलवान आदमी थे। सारा शरीर गठा हुआ था लोहे जैसा! अंग-अंग पर रक्त की लालिमा फूटी पडती थी। कितनी ही बार लेखक के पास आया-जाया करते थे। दर्शन करते, प्रवचन सुनते और कुछ थोडा बहुत अवकाश मिलता तो अपनी विजय की कहानियाँ दुहरा जाते! बड़े-बड़े पहलवानों को मिनटो में पछाड देने की घटनाएँ जब वे सुनाते तो मै देखता, उनकी छाती अहंकार से फूल उठती थी। बीच मे दो तीन दिन नहीं पाए। एक दिन आए तो बिल्कुल निढाल, बेदम! शरीर लडखडा-सा रहा था ! मैने पूछा-'पहलवान साहब क्या हुआ?' पहलवान जी बोले'महाराज ! हुआ क्या ? आपके दर्शन भाग्य में बदे थे सो मरता-मरता बचा हूँ ! मेरा तो मलेरिया ने दम तोड दिया ।। मैं हँस पडा । मैंने कहा-'पहलवान साहब ! आप जैसे बलवान पहलवान को एक नन्हे से मच्छर ने पछाड दिया । और वह भी इस बुरी तरह से !' पहलवान हँसकर चुप हो गया। यह अमर सत्य है मनुष्य के बल का ! यहाँ उत्तर बन ही क्या सकता है ? क्या मनुष्य इसी बल के भरोसे बड़े होने का
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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