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________________ * दुक्कड़ तिचात् निष्फल होता की नहीं करता प्रतिक्रमण : मिच्छामि दुक्कडं ८३ मिच्छामि टुक्कड दे देता है फिर भविष्य में उस पाप को नहीं करता है, वस्तुतः उसी का दुष्कृत मिथ्या अर्थात् निष्फल होता है। - जं दुक्कई ति मिच्छा, __तं चेव निसेवए पुणो पावं । पच्चक्ख • मुस्सावाई, मायानियडी - पसंगो य॥६५शा -साधक एक बार मिच्छामि दुक्कड देकर भी यदि फिर उस पापाचरण का सेवन करता है तो वह प्रत्यक्षतः झूठ बोलता है, दंभ का जाल बुनता है." . प्राचार्य धर्मदास तो उपदेश माला में इस प्रकार के धर्मवजी एवं बकवृत्ति लोगों के लिए बड़ी ही कठोर भत्सना करता है, उन्हें मिथ्यादृष्टि कहता है। जो जहवाय न कुणइ, मिच्छादिट्टी तउ हु को अन्नो २.. बुड य मिच्छत्त, परस संकं जणेमायो ।।५०६॥ जो व्यक्ति जैसा बोलता है, यदि भविष्य में वसा करता नही है तो उससे बढ़करें मिथ्या दृष्टि और कौन होगा? वह दूसरे भद्र लोगों के १- जैनजगत के महान् दार्शनिक वाचक यशोविजय भी अपनी गुर्जर भाषा मे इसी भावना को व्यक्त कर रहे हैं 'मूल पदे पडिकमण भारयू, पापतणु अणकरवू । । . . . मिच्छा दुक्कड़ देई पातक, ते भावे जे सेवेरे। . आवश्यक साखे ते परगट, . माया. मोसो सेवेरे।। . .
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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