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________________ : २१ : प्रतिक्रमण : जीवन की एकरूपता किस मनुष्य का जीवन ऊँचा है और किस का नीचा? कौन मनुष्य महात्मा है, महान है और कौन दुरात्मा तथा क्षुद्र ? इस प्रश्न का उत्तर प्रापको भिन्न भिन्न रूप में मिलेगा। जो जैसा उत्तर दाता होगा वह वैसा ही कुछ कहेगा। यह मनुष्य की दुर्बलता है कि वह प्रायः अपनी सीमा में घिरा रह कर ही कुछ सोचता है, बोलता है, और करता है। हॉ तो इस प्रश्न के उत्तर में कुछ लोग आपके सामने जात-पात को महत्त्व देंगे और कहेगे कि ब्राह्मण ऊँचा है, क्षत्रिय ऊँचा है, और शूद्र नी है, चमार नीचा है, भंगी तो उससे भी नीचा है। ये लोग जात-पॉत के जाल में इस प्रकार अवरुद्ध हो चुके हैं कि कोई ऊँची श्रेणी की बात सोच ही नहीं सकते । जब भी कभी प्रसग श्राएगा, एक ही गग अलापेगे-जात-पात का रोना रोयेंगे। कुछ लोग सम्भव है धन को महत्व दे? कैसा ही नीच हो, दुराचारी हो, गुडा हो, जिसके पास दो पैसे हैं, वह इनकी नजरों में देवता है, ईश्वर का अंश है। राजा और सेठ होना ही इनके लिए सबसे महान् होना है, धर्मात्मा होना है-'सर्व गुणाः कांचनमाश्रयन्ते । और यदि कोई धनहीन है, गरीब है तो बस सबसे बड़ी नीचता है। गरीब आदमी कितना ही सदाचारी हो, धर्मात्मा हो, कोई पूछ नहीं । 'मुया दरिद्दा य समा भवन्ति ।'
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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