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________________ १२४ आवश्यक दिग्दर्शन । प्रश्न सुन्दर है। उत्तर में निवेदन है कि गृहस्थ लोग प्रति दिन अपने घरों में झाडू लगाते हैं और कूडा साफ करते हैं । परन्तु कितनी ही सावधानी से झाडू दी जाय, फिर भी थोडी बहुत धूल रह ही जाती है, जो किसी विशेष पर्व अर्थात् त्योहार आदि के दिन साफ की जाती है । इसी प्रकार प्रति दिन प्रतिक्रमण करते हुए भी कुछ भूलों का ' प्रमार्जन करना बाकी रह ही जाता है, जिसके लिए पाक्षिक प्रतिक्रमण किया जाता है । पक्षभर की भी जो भूलें रह जायें उनके लिए चातुर्मासिक प्रतिक्रमण का विधान है। चातुर्मासिक प्रतिक्रमण से भी अवशिष्ट रही हुई अशुद्ध, सांवत्सरिक क्षमापना के दिन प्रतिक्रमण करके दूर की जाती है। __ स्थानाङ्ग सूत्र के षष्ठ स्थान के ५३८ वें सूत्र में छह प्रकार का प्रतिक्रमण बतलाया है : (१) उच्चार प्रतिक्रमण-उपयोगपूर्वक बड़ी नीत का पुरीष का त्याग करने के बाद ईयर्या का प्रतिक्रमण करना, उच्चार प्रतिक्रमण है। (२) प्रश्रवण प्रतिक्रमण-उपयोगपूर्वक लघुनीत अर्थात् पेशाब करने के बाद ईयों का प्रतिक्रमण करना, प्रश्रवण प्रतिक्रमण है। (३) इत्वर प्रतिक्रमण-देवसिक तथा रात्रिक आदि स्वल्पकालीन प्रतिक्रमण करना, इत्वर प्रतिक्रमण है। (४) यावत्कथिक प्रतिक्रमण-महाव्रत आदि के रूप में यावजीवन के लिए पाप से निवृत्ति करना, यावत्कथिक प्रतिक्रमण है। - -'णणु देवसियं रातियं पडिक्कतो किमितिपक्खिय-चाउम्मासिय-सवत्सरिएसु विसेसेणं पडिक्क्रमति ? .."जया लोगे गेहं दिवसे दिवसे पमिजिजंतं पि पक्षादिसु अभधितं "उचलेवणपमजणादीहि सन्जिजति । एवमिहा वि वसोहण विसेसे कीरति त्ति । -भावश्यक चूणि
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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