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________________ १०६ आवश्यक दिग्दर्शन यह चतुर्विशतिस्तव आवश्यक, जिसका दूसरा नाम अनुयोग द्वार सूत्र में उत्कीर्तन भी है; सामायिक साधना के लिए आलम्बन-स्वरूप है। चौबीस तीर्थकर, जो कि त्याग-वैराग्य के, संयम-साधना के महान् आदर्श हैं, उनकी स्तुति करना, उनके गुणों का कीर्तन करना, चतुर्विशतिस्तव आवश्यक कहलाता है । तीर्थकर देवों की स्तुति से साधक को महान् आध्यात्मिक बल मिलता है, साधना का मार्ग प्रशस्त होता है, जड एवं मृत श्रद्धा संजीव एवं स्फूर्तिमती होती है, त्याग तथा वैराग्य का महान् आदर्श आँखो के सामने देदीप्यमान हो उठता है । तीर्थकरों की भक्ति के द्वारा साधक अपने औद्धत्य तथा अहंकार का नाश करता है, सद्गुणों के प्रति अनुराग की वृद्धि करता है, फलतः प्रशस्त भावों की, कुशल परिणामो की उपलब्धि करके संचित कर्मों को उसी प्रकार नष्ट कर देता है, 'जिस प्रकार अग्नि की नन्ही-सी जलती वर्तमान-काल-चक्र में भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थकर हुए हैं। चतुर्विशतिस्तव के लिए आजकल 'लोगस्स उज्जोयगरे' नामक स्तुति पाठ का प्रयोग किया जाता है। १ आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने कहा है'भत्तीइ जिणवराणं, खिज्जती पुव्वसंचिया कम्मा ।' -आवश्यक नियुक्ति, १०७६ पाप-पराल को पुञ्ज बण्यो अति, . .. - मानो मेरु प्राकारो। ते -तुम नाम हुताशन सेती, सहज ही प्रजलत सारो। पदमप्रभु पावन नाम तिहारो॥ -विनयचन्द्र चौबीसी।
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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