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________________ सामायिक आवश्यक १०३ * सामाइयसंजएणं भंते ! किं सलिगे होज्जा, अन्नलिंगे होन्ज़ा, गिहिलिगे होज्जा? दवलिंग पडुच्च सलिंगे वा होज्जा, अन्नलिंगे वा होज्जा, गिहिलिंगे वा होज्जा । भावलिंगं पड़च्च नियमा सलिंगे होज्जा। . भग० २५-1-७॥ सामायिक के सम्बन्ध में अाजकल एक बहुत भ्रान्तिपूर्ण मत चल रहा है। वह यह कि सामायिक की साधना केवल अभावात्मक साधना है । उसमे हिंसा नहीं करना, इस प्रकार 'न' के ऊपर ही बल दिया गया है। अतः सामायिक की साधना करने वाला गृहस्थ तथा साधु किसी की रक्षा के लिए, किसी जीव को मरने से बचाने के लिए, कोई. विधानात्मक प्रवृत्ति नहीं कर सकता । यह प्रश्न व्यर्थ ही उठ खडा हुआ है ! यदि जैन-आगम-साहित्य का भली भॉति अवलोकन किया जाता तो इस प्रश्न की. उत्पत्ति के लिए अवकाश ही न रहता। कोई भी विधि-मार्ग अर्थात् साधना-पथ अभावात्मक नही हो सकता | निषेध के साथ विधि अवश्य ही रहती है। झूठ नहीं बोलना, इस वाक्य का अर्थ होता है-असत्य का निषेध और सत्य का विधान । अब आप समझ सकते हैं-सत्य की साधना केवल निषेधात्मक नहीं है, प्रत्युत विधानात्मक भी है। इसी प्रकार अहिंसा आदि की साधना का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। सामायिक मे पापाचार का निषेध किया है, धर्माचार का नहीं । किसी जीव को मरने से बचाना धर्माचार है, अतः सामायिक में उसका निषेध नही । आवश्यक-अवचूरि में सामायिक का निर्वचन करते हुए कहा है "सामाइयं नाम सावज्जजोगपरिवजणं, निरवज - जोग - पडिसेवणं च ।" -'सावध योगों का त्याग करना और निरवद्य योगों मे प्रवृत्ति करना ही सामायिक है।'
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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