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________________ - ammarAroman श्रीसन्जनचित्तवल्लभ सटीक २७ हे वहतो पानी में पेठे (घुसे ) रहते भी नहीं धुल सकता है और नख दांत केश और मुखका शृंगार न करता है इससे तो तूमंडन प्रिय कामी प्रगटपने दृष्टि पड़ता है। वीतराग अकामी नहीं होसकता इससे जो ऐसा करनाहै तो सार्थक नाम यति मतरखया अर्थात कुलिंगी वेशी नाम रखाना योग्य है ॥२४॥ वृत्तविंशतिभिश्चतुर्भिरधिकैःसल्ल क्षणीनान्वितै ग्रंथसजनचित्तवल्ल भमिमंश्रीमल्लिपेणोदितं । श्रुत्वात्में द्रियकुञ्जरान्समटतो रुन्धन्तुतेदुर्ज रान् विद्वान्सो विपयाटवीपुसततंसं सारविच्छित्तये ॥ २५॥ ॥ भापाटीका ॥ विद्वानलोग चौबीस शार्दूलविक्रीडित छंदों में श्री मत् मल्लिषेणनाम श्राचार्य के बनायेहुए इस परमोराम लक्षण युक्त ग्रंथको सुनकर अपनी चंचल और मस्त मानोहस्ती ज्यों स्वच्छंद होकर विषयरूप बन में चारों ओर घूमता है भटकनेवाली इंद्रियों को रोको ww - -
SR No.010712
Book TitleSajjan Chittavallabh Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherNathuram Munshi
Publication Year1899
Total Pages33
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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