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________________ श्रीसज्जनचित्तवल्लभ सटीक । २५ लन्ध्यामानुपजाति मुत्तमकुलम् रूपंचनीरोगताम् बुद्धिंधीधनसेवनं सुचरणश्रीमज्जिनेंद्रो दितम् । लो भार्थवसुपूर्णहेतु भिरलंस्तोकायसी ख्यायभो देहिन्देहसुपोतकंगुणभृतं भक्तुंकिमिच्छास्तिते ॥ २१ ॥ ॥ भापाटीका ॥ हे आत्मा! मनुष्य जन्ममें उत्तम जाति कुलको पा. याहै (यदिम्लेच्छ शूद्र होता तो क्या उत्तम आचरण करसक्ता?) और रूपवान सुन्दर निरोग शरीर पाया हे रोगीहोता तो क्या धर्म कर्म आचरण कर सकता? | फिर ज्ञान और अच्छे पंडितों का सत्संग मिला है। और श्रीमग्जिनेंद्र का कहाहुया चारित्र भी तूने पाया है यह सर्व दुर्लभ २ सामग्री पाकर अब त लोभ के वश होकर धनकी चाहना को पूर्ण करने के हेतु कि. चिनगान तग भंगुर सुखकी बांछाकर सर्व गुगुरुप रत्नोकर भराहुया यह शरीररूपजहाज़ संमार समुद्र से पार करने वाला तिसके नोइने को (विनाशको)। Amrammar mom maamanawwwmmmmm.marama-maanana
SR No.010712
Book TitleSajjan Chittavallabh Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherNathuram Munshi
Publication Year1899
Total Pages33
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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