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________________ 125 जो मनुष्य अध्यात्म-ज्ञान रूपी रथ पर बैठा हुआ सकल्प रूपी नायक के द्वारा (विभिन्न मार्गों (स्थानो) पर भ्रमण करता है, वह अरहत (समतादशी) द्वारा प्रतिपादित ज्ञान की महिमा करनेवाला सम्यग्दृष्टि ममझा जाना चाहिए । 126 जैसे कोई व्यक्ति (शरीर पर) चिकनाई से युक्त हुआ बहुत 127. धूल वाले स्थान पर रहकर (नाना प्रकार के) शस्त्रो द्वारा चेष्टा करता है तथा (उनके द्वारा) ताड, पहाडी ताड, केले, बाँस और खजूर के वृक्षो को छेदता है तथा भेदता है, सचित्त और अचित वस्तुओ का नाश करता है। 128 नाना प्रकार के साधनो से (वृक्षो का) नाश करते हुए उसके निश्चय ही धूल का सयोग (होता है)। (इसका) क्या आधार है ? (इस) (पर) निश्चय-दृष्टि से हमे विचार करना चाहिए। 129 जो उस मनुष्य पर चिकनाई का अस्तित्व है, उस कारण से उम (मनुष्य) के वह धूल-सयोग (होता है) । यह निश्चय-दृष्टि से समझा जाना चाहिए। अन्य सभी काय-चेष्टाओ से (धूल-सयोग) नही (होता है)। 130 इस प्रकार मच्छित व्यक्ति) बहत प्रकार की चेष्टाओ मे प्रवृत्ति करता हा चेतना मे रागादि को करता हुआ (कर्म)-धूल के द्वारा मलिन किया जाता है। चयनिका [ 45
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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