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________________ 108 (मेरी कहलाने वाली वस्तु) (किसी के द्वारा छिन्न-भिन्न कर दी जाए, तोड दी जाए अथवा ले जाई जावे अथवा वह सर्वनाश को प्राप्त हो जाए या किसी कारण से (मेरे से) दूर चली जाए, तो भी (कोई बात नही है ), ( क्योकि ) (कोई भी) परिग्रह (वस्तुत ) मेरा ( नही है ) । 109 इच्छारहित व्यक्ति परिग्रहरहित कहा गया ( है ) | इसलिए ( ऐसा ) ज्ञानी धर्म ( शुभ भाव / शुभ मानसिक तनाव ) को भी नही चाहता है । वह परिग्रहरहित (व्यक्ति) तो ( शुभ भाव / शुभ मानसिक तनाव का ) ज्ञायक होता है । 110 इच्छारहित (व्यक्ति) परिग्रहरहित कहा गया ( है ) । इसलिए ( ऐसा ) ज्ञानी धर्मं (अशुभ भाव / अशुभ मानसिक तनाव ) को भी नही चाहता है । वह परिग्रहरहित (व्यक्ति) अधर्म का नायक होता है । 111 इस प्रकार नाना प्रकार को समस्त जीवनोपयोगी वस्तुओ को ज्ञानी नही चाहता है । वह हर समय ( पर के) आश्रयरहित (होता है) । ( वह ) स्वणामित ( रहता है) तथा ज्ञायक सत्तामात्र बना रहता है । 1 112 निश्चय ही ज्ञानी सब वस्तुओं मे राग का त्यागी (होता है) । अत कर्म के मध्य मे फसा हुआ भी ( कर्मरूपी) रज के द्वारा मलिन नही किया जाता है, जिस प्रकार कनक कीचड के मध्य मे ( पडा हुआ) ( मलिन नही किया जाता है) । चयनिका [ 39
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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