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________________ का प्रयोग देखने को मिलता है । ग्रन्थ मे मुख्यत दस विभाग / अधिकार हैं, जो निम्न हैं - 6 सवर, 1 जीव, 2 जीवाजीव, 3 कर्तृ कर्म, 4 पुण्य-पाप, 5. प्रसव, 7. निर्जरा, 8 बन्ध, 9 मोक्ष श्रीर 10 विशुद्ध ज्ञान | इनमे से कर्तृ - कर्माधिकार और विशुद्ध ज्ञानाधिकार अलग करदें तो 8 अधिकारो मे जैन दर्शन मान्य नव तत्त्वो के स्वरूप का विशद विश्लेषण प्राप्त होता है । कर्तृ - कर्माधिकार मे आत्मा की स्वतन्त्रता भौर परतन्त्रता के कारणो पर व्यवहार और निश्चय की दृष्टि से मार्मिक वर्णन है और विशुद्ध ज्ञानाधिकार मे आत्मिक विशुद्ध ज्ञानादि गुणो की उपादेयता पर दार्शनिक एव अध्यात्मिक दृष्टि से विवेचन उपलब्ध है । वस्तुत समयसार, दार्शनिक एव आध्यात्मिक दृष्टि से एक अनुपम ग्रन्थ है । आ कुन्दकुन्द अनेकान्तवाद के पक्षधर होने से उन्होने कही भी ऐकान्तिकता को न अपनाकर व्यवहार और निश्चय को प्रयोजनवत्ता की सापेक्ष दृष्टि को आधार मानकर दोनो का सन्तुलन बनाये रखा है । अपेक्षा भेद से कही व्यवहार को प्रमुखता दी है, तो कही निश्चय को तथा कही दोनो ही का मत प्रस्तुत किया है । चयनिका - डॉ सोगाणी मुक्तानो का चयन / संग्रह कर सजाने / सम्पादन मे सिद्धहस्त हैं । समयसार की 415 गाथाओ में से केवल 160 गाथाओ का चयन कर, सवार कर इन्होने प्रस्तुत चयनिका सम्पादित की है । गाथाओ का अर्थ करने की और व्याकरणिक विश्लेषण की डॉ सोगाणीजी की अपनी स्वतंत्र और विशिष्ट प्रक्रिया / शैली है । तदनुरूप ही इन्होने अपनी शैली मे विस्तृत प्रस्तावना के साथ यह चयनिका तैयार कर प्राकृत भारती को सहर्ष प्रकाशनार्थं प्रदान की है ।
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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