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________________ 54 (अज्ञानी) श्रात्मा जिस शुभ-अशुभ भाव को करता है, वह उसका निस्सदेह कर्त्ता होता है, वह (भाव) उसका कर्म होता है, (तथा) वह आत्मा हो उसका भोक्ता होता है । 55 जो गुरण जिस द्रव्य मे ( होता है), वह निश्चय ही अन्य द्रव्य मे प्रवेश नही करता है, (जब ) वह ( गुरण) अन्य (द्रव्य) मे प्रविष्ट नही हुआ है, किस प्रकार उस (अन्य ) द्रव्य को परिणमन करायेगा ? (तो) 56 आत्मा पुद्गलमय कर्म मे 57 58 (स्वयं के ) द्रव्य और गुण को सर्वथा उत्पन्न नही करता है, (इसलिए ) उन दोनो को उसमे पुद्गल कर्म मे ) उत्पन्न न करता हुआ, वह उसका (पुद्गल कर्म का ) कर्त्ता कैसे होगा ? 59 जीव का निमित्त बना हुआ होने पर (कर्म) - बध के फल को देख कर, जीव के द्वारा कर्म किया गया है, (ऐसा ) उपचार मात्र से ( व्यवहार से ) कहा जाता है । योद्धा द्वारा युद्ध किया जाने पर, राजा के द्वारा ( युद्ध किया गया है) इस प्रकार लोक कहता है । उसी प्रकार व्यवहार से ( कहा जाता है कि) जीव के द्वारा ज्ञानावरणादि (कर्म) किया गया है । व्यवहारनय का (यह) कथन ( है कि ) श्रात्मा पुद्गल द्रव्य को उत्पन्न करता है, ( उसको ) परिणमन कराता है, ग्रहरण करता है और बाँधता है । चयनिका [ 21
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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