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________________ दूमरो को लघुता का अनुभव कभी नही कराता है (122) । (6) वह यदि कषायो के दबाव से सद्मार्ग से विचलित हो जाता है, तो भी अपने को पुन समार्ग मे स्थापित कर लेता है (123) । (7) वह परम शान्ति के मार्ग मे स्थित माधुओ के प्रति वात्सल्यता प्रकट करता है। (8) वह समतादर्शी द्वारा प्रतिपादित ज्ञान की महिमा का प्रसार करता है (124) । इस प्रसार के लिए नैतिकआध्यात्मिक मूल्यो का जीवन जीता है । समयसार का कथन है कि वह विद्या (अध्यात्म-ज्ञान) रूपी रथ पर बैठा हुआ मकल्परूपी नायक के द्वारा विभिन्न स्थानो पर भ्रमण करता है (125) । व्यक्ति के जीवन मे सम्यग्दर्शन का उदय एक सारगर्भित घटना है। इससे उसके व्यक्तित्व मे आमूल-चूल आन्तरिक परिवर्तन हो जाता है। उसे स्वचेतना की स्वतन्त्र अवस्था और और परतन्त्र अवस्था मे मौलिक भेद समझ मे आ जाता है। वह अब स्वतन्त्रता के मार्गदर्शन मे जीने की कला विकसित कर लेता है उसमे यह ज्ञान विकसित हो जाता है कि शुद्ध ज्ञानास्मक चेतना मे क्रोधादि कपाएँ नही रहती हैं (91) । कर्मों के अनेक फल उसके स्वभाव नही है। वह तो ज्ञायक सत्ता है (101)। वह जीवन मे लोकोपयोगी सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक क्रियाओ मे प्रवृत्ति करता हुआ उनमे रागादि(आसक्ति) से मुक्त रहता है, इसलिए मानसिक तनाव से मलिन नही किया जाता है (131)। वह स्वतन्त्र आत्मा और परतन्त्रता से उत्पन्न कर्मों (मानसिक तनावो) का भेद समझ लेता है (31)। अत वह नये कर्मों (मानसिक तनावो) को नियन्त्रित कर लेता है (90) । वह कर्मो के फलो को ज्ञाता-द्रष्टा भाव से भोगता है। वह वस्तुओ को उपयोग मे लाते हए भी उन पर आश्रित नही होता चयनिका [ xix
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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