SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस्तुओ व क्रियाओ के कर्ता हैं। उन दोनो मे भेद अतरग की अपेक्षा से होता है । एक अहकारशून्य जीव है, तो दूसरा अहकारमयी । एक मानसिक तनाव से मुक्त है, तो दूसरा मानसिक तनाव से घिरा हुआ। नैतिक दृष्टिकोण से भाव दो प्रकार के होते है शुभ भाव और अशुभ भाव। गुरिणयो मे अनुराग, दुखियो के प्रति करुणा आदि शुभ भाव हैं। अहकार, कुटिलता आदि अशुभ भाव हैं । अज्ञानी व्यक्ति इन दोनो भावो से एकीकरण कर लेता है और परतन्त्र बन जाता है । अज्ञानी इन दोनो भावो का कर्ता व भोक्ता होता है (54)। इनमे वह रूपान्तरित होकर मानसिक तनाव का जनक होता है। ज्ञानी शुद्ध भावो (अतीन्द्रिय सुख, ज्ञान आदि) का कर्ता होता है। वह मासिक तनाव से मुक्त होता है। वह शुभ अशुभ भावो का ज्ञाता-द्रष्टा होता है । जाता-द्रष्टा होने से ज्ञानी कर्ता का इनसे एकीकरण नष्ट हो जाता है और उसके मानसिक तनाव बिदा हो जाते हैं। स्वतन्त्रता का स्मरण सम्यग्दर्शन . ऊपर बताया जा चुका है कि जब व्यक्ति परतन्त्रता का जीवन जोता है, तब वह पर भावो तथा पर द्रव्यो मे एकीकरण कर लेता है । इस एकीकरण के कारण उसमे वस्तुप्रो व व्यक्तियो के प्रति आसक्ति उत्पन्न होती है और उनके विपय मे आसक्तिपूर्ण चिन्तन को धारा उसमे प्रवाहित होने लगती है। इस आसक्ति से ही उसमे काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, कुटिलता आदि उत्पन्न होते हैं जिनके फलस्वरूप वह मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है। वह (परतन्त्र) व्यक्ति कर्मों का कर्ता, उनसे उत्पन्न कषायो (सवेगो) का कर्ता, वस्तुओ का कर्ता तथा शुभ-अशुभ भावो का कर्ता अपने xvi ] समयमार
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy