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________________ (मान, माया, लोभ करुणा मादि) से प्रेरित होकर क्रियाएँ हो सकती हैं। ये क्रियाएं दूसरो को प्रभावित करें या न करें, किन्तु व्यक्ति को तो अवश्य ही प्रभावित कर देती हैं। व्यक्ति का व्यक्तित्व इनके प्रभाव से परिवर्तित होता दिखाई देता है। यह प्रभाव या परिवर्तन सस्कार के रूप मे व्यक्ति मे सचित होता चलता है। ये सचित सस्कार सवेग-जनित क्रियाप्रो को उत्पन्न करते हैं और फिर उनसे निर्मित सस्कार एकत्रित होते रहते हैं। ये सस्कार ही पुद्गलात्मक परमाणो के रूप मे आत्मा के साथ सलग्न हो जाते हैं। इन्हे ही कर्म कहा जाता है। ये कम हो जब विभिन्न कारणो से क्रियाशील होते हैं, तो मानसिक तनाव का कारण बन जाते हैं । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि मवेग-जनित क्रियाओ से हो व्यक्तित्व पर प्रभाव उत्पन्न होता है प्रोर यह प्रभाव ही सचित हो जाता है। इसे ही पाधव और वध कहा जाता है। क्रियाओ के प्रभाव की उत्पत्ति भोर सचय क्रमश भाश्रव और वध कहे जाते हैं। यहाँ यह समझना चाहिए कि व्यक्ति जन्म-जन्मो मे कर्मों के पाश्रव और वध के कारण ही परतन्त्रता का जीवन जीता चलता है । मानसिक तनाव इस परतत्रता की ही अभिव्यक्ति है। इतना होते हुए भी कर्म मात्मा के स्वतन्त्र स्वभाव को नष्ट नहीं कर सकते हैं। समयसार का कथन है कि जिस प्रकार मैल के घने सयोग से ढकी हुई वस्त्र की सफेद अवस्था भदृश्य हो जाती है, उसी प्रकार प्रज्ञानरूपी मैल से ढका हुमा ज्ञान अदृश्य हो जाता है (84) । इसी प्रकार मूर्छारूपी मैल से ढका हुआ सभ्यक्त्व और कषायरूपी मैल से ढका हुआ स्वरूपाचरण चारित्र अदृश्य हो जाता है (83, 85) । निस्सन्देह कर्मों ने चेतना की स्वतन्त्रता को आच्छादित किया है (86), जिसके फलस्वरूप परतन्त्रता पनपी VIL ] समयसार
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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