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________________ 24 26 27 1 2 पथे (पथ) 7/1 मुस्सत ( मुम्सत) कर्म व ( पस्स) सकृ लोगा (लोग) 1/2 भर्णात ववहारी ( ववहारि ) 1/2 वि मुस्सदि सक अनि एसो ( एत) 1 / 1 सत्रि पथो नही य ( प्र ) = किन्तु मुस्सदे (मुस्पदे) कर्म कोई' (प्र) = कोई (पथ) 2 / 1 अनि पस्सिदृण (भरण) व 3 / 2 सक कर्म व 3 / 1 3 (मुस्सदि ) व 3 / 25 तह (प्र) = उसी प्रकार जीवे (जीव ) 7/1 कम्माणं ( कम्म ) 6 / 2 शोकम्माण (गोकम्म) 6/2 च (प्र) = और परिसद् (पस्स) सकृ वरण (वा) 2 / 1 जीवस्स (जीव ) 6 / 1 एस (एत ) 1 / 1 सवि वणी ( वण्ण) 1 / 1 जिणेहि ( जिरग ) 3 / 2 ववहार दो (ववहार ) पंचमी प्रार्थक 'दो' प्रत्यय उत्तो ( उत्त) भूकृ 1 / 1 अनि 1 / 1 1/2 1 तत्थ (त) 7 / 1 सवि भवे (भव ) 7/1 जीवारण ससारस्थारण (ससारत्थ ) 6 / 2 वि होति (हो) ण ( अ ) = सक प्रनि. 1/2 ] देहो 1/2 सवि य (भ्र) गधरसफासरूवा [ ( गध) - (रम ) - ( फास ) - (रुव) (देह) 1/1 सठारण माइया [ ( सठारण ) + (प्राइया) ] सठाणं ( सठाण) 1 / 1 ग्राइया (आइय ) 1/2 जे (ज) = प्रोर सब्वे (सव्व ) 1/2 सवि ववहारस्स य पादपूरक रिणच्छ्यदण्डू (ववदिस) व 3 / 2 सक - (रिगच्छय दण्डु) (ववहार ) 6/1 वि ववदिसति (जीव ) 6/2 व 3 / 2 अक 'इ' कभी कभी दोघं हो जाता है (पिशल पृष्ठ 138 ) । कभी-कभी पष्ठी का प्रयोग तृतीया के स्थान पर पाया जाता है (हेम-प्राकृतव्याकरण, 3-134) | वणवाह्य दिखाव - बनाव ( outward appearance), Monter Williams, Sanskrit-English Dictionary 4 कभी कभी तृतीया के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हैम- प्राकृतव्याकरण, 3-134 ) । चयनिका [65
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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