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________________ [५७ अपने हाथ में लें तो परिस्थति में सुधार की आशा की जा सकती है। उनके .. लिए यह कार्य कठिन नहीं है । भारत का पुरातन इतिहास बतलाता है कि राजपुत्रों ने महलों का परित्याग कर वनों की शरण ली और आत्मिक साधना में तत्पर होकर स्व-पर का कल्याण किया। महलों में पूर्व संचित पुण्य का भोग . करके क्षय किया जा सकता है। किन्तु नयी सामग्री जुटानी है तो महलों को छोड़ना होगा। . . - आदिवासी लोगों की ओर भी अनेक कार्य कर्ताओं का ध्यान . आकर्षित हुआ हैं। उन्हें सभ्य और शिक्षित बनाने का प्रयत्न हो रहा है। किन्तु सच्चीसभ्यता और शिक्षितता का लक्षण यह है कि वे दुर्व्यसनों से बचें, . अपने जीवन व्यवहार में सुसंस्कृत हों, पापों से अपनी रक्षा कर सकें, अपने जीवन के उच्च आदर्श को समझ सकें। जिन्होंने स्वयं अपने जीवन को सुधारा है, उन पर दूसर के जीवन को भी सुधारने का दायित्व है । दूसरों के जीवन . सुधार में सहायक बनना भी एक प्रकार से अपने जीवन को सुधारना है । जिसके पास पुण्य का बल है, दिमाग का बल है, वह साधारण प्रयास से भी दूसरे के जीवन में परिवर्तन ला सकता है। .... सम्पत्तिशाली घरों के बढ़ने और चढ़ने के कारण बन्धु-भाव व्यसन हीनता और सेवा भावना है। इनके विपरीत कार्य होने से उनका विनाश हो जाता है । भर्तृहरि ने कहा है- : .. ... दौमन्च्या . न्द्रपति विनश्यति, .. . . . : . यतिः संगात् सुतो लालनात्. । .. विप्रोऽनध्ययनात् कुलं कुतनयात्, शीलं . खलोपासनात् ।। ह्रीर्मद्यादनवेक्षणादपि कृषिः , . स्नेहः . प्रवासाश्रयात् मैत्री चाप्रणयात् 'समृद्धिरनयात् । त्यागात् प्रमादाद्धनम् ॥ ... मंत्री खराब हो तो राजा विनष्ट हो जाता है। परिग्रह धारण
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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