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________________ ३७] 'व्यक्तियों के सुधार से समाज का सुधार होता है और समाज के सुधार से शासन में सुधार आता है। अगर आप अपने किसी एक पड़ौसी की भावना में परिवर्तन ला देते हैं और उसके जीवन को पवित्रता की ओर प्रेरित करते है तो समझ लीजिए कि आपने समाज के एक अंग को सुधार दिया है। प्रत्येक व्यक्ति यदि इसी प्रकार सुधार के कार्य में लग जाय तो समाज का कायापटल होते देर न लंगे। आज इस देश में जब अनैतिकता, भष्टाचार, घूसखोरी, और अप्रामाणिकता आदि दोषों का अत्यधिक फैलाव हो रहा है और मनुष्य की सद्भावनाएँ विनष्ट होती जा रही हैं तब इस प्रकार के सुधार की बड़ी प्रावश्यकता हैं । आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार प्रवेश कर चुका है। वह निरन्तर बढ़ता गया और उसकी रोक-थाम न की गई तो इस देश की क्या दशा होगी, कहना कठिन है । अतएव प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को सर्वप्रथम तो अपने जीवन में प्रविष्ट बुराइयों को साहस के साथ दूर करना चाहिए और फिर अपने पड़ोसियोंको सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। अगर आज आप इस पर ध्यान नहीं देंगे तो कल जाकर,घोर पश्चात्तापक रने का समय आ सकता है। __आप स्थूल भद्र मुनि का आख्यान सुन रहे हैं । एक स्थूल भद्र ने रूपाकोशा के जीवन को सुधार दिया। क्या उसके सुधार से अनेकों का सुधार नहीं हुआ होगा ? सुधार की परम्परा इसी प्रकार प्रारंभ होती है। आत्मबली महामानव मनुष्यों पर ही नहीं, पशुओं पर. भी अपना प्रभाव डालते हैं और उनको भी कल्याण पथ का पथिक बना देते हैं । भारतीय साहित्य में ऐसे उदाहरण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। . स्थूल भद्र का एक साथी मुनि सिंह की गुफा पर चार महिने सिंह के सामने अडोल रहा, यद्यपि सिंह उसे देख कर गुर्राया, उसने उग्ररूप धारण किया। इधर साधक ने अपनी शान्त दृष्टि सिंह की ओर डाली और उस दृष्टि में कुछ ऐसा अद्भुत प्रभाव था कि सिंह का सारा उग्न भाव शान्त हो गया। एक क्षण पहले गुर्राने वाला सिंह मुनि के चरण चूमने लगा! एक आचार्य ने . कहा है-'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैर त्यागः' । जिसके अन्तः करण में .
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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