SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .. [ ४२७ उपस्थित होकर श्राविका के योग्य व्रतों को अंगीकार किया। इस प्रकार पति और पत्नी दोनों अनुरूप हो गए। : ... .. पति और पत्नी के विचार एवं प्राचार में जब समानता होती है तभी " गृहस्थी स्वर्ग बनती है और परिवार में पारस्परिक प्रीति एवं सद्भावना रहती है। जिस घर में पति-पत्नी के प्रचार-विचार में विरूपता-विसदृशता होती है, वहाँ से शान्ति और सुख किनारा काट कर दूर हो जाते हैं। पत्नी, पति का आधा अंग कही गई है, इसका तात्पर्य यही है कि दोनों का व्यक्तित्व पृथक्- पृथक् प्रकार का न होकर एकरूप होना चाहिए ।.. दोनों में एक दूसरे के लिए स्वार्पण का भाव होना चाहिए। जैसे आदर्श पत्नी स्वयं कष्ट झेल कर भी . : अपने पति को सुखी बनाने का प्रयत्न करती है, उसी प्रकार पति को भी पत्नी के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। दोनों में से कोई एक यदि श्रावक धर्म से विमुख होता हो तो दूसरे को चाहिए कि वह प्रत्येक संभव और समुचित उपाय से उसे धर्मोन्मुख बनावे। महारानी चेलना ने किस प्रकार धर्म . . . में हढ़ रह कर सम्राट श्रेणिक को धर्मनिष्ठ बनाने का प्रयास किया था, यह __ बात आप जानते. हाग।.. . . ....... : प्रानन्द दूरदर्शी गृहस्थ था। उसने सोचा कि घर में विषमता होने से शान्ति प्राप्त न होगी। अतएव उसने अपनी पत्नी शिवानन्दा से कहा-मैंने बारह व्रत अंगीकार किये हैं, देवानुप्रिये ! तू भी प्रभु के चरणों में जाकर व्रत अंगीकार कर ले। शिवानन्दा ने अतीव हर्ष और उल्लास के साथ व्रत स्वीकार कर लिये। ............ .................... - भगवान महावीर स्वामी के सप्तम पट्टधर आचार्य श्री स्थूलभद्र ने महामुनि भद्रवाह से दस. पूर्वो का ज्ञान अर्थसहित और अन्तिम चार पूर्वो का ज्ञान सूत्र रूप में प्राप्त किया। भद्रबाहु के. पश्चात् स्थूलभद्र ने कौशलपूर्वक शासनसूत्र संभाला। उस काल तक वीरसंघ में किसी प्रकार का शाखाभेद नहीं हुया था। वह अखंड रूप में चल रहा था । श्वेताम्बर दिगम्बर आदि भेद. बाद में हुए। - -
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy