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________________ मुक्ति का मेला कर लो भाव से, अवसर मत चूको । 'दया दान का गोठ बनाओ, भांग भगति की पीश्री ॥ [ ४११ संसार में दो किस्म के मेले होते हैं- १) कर्मबंद करने वाले और (२) बंध काटने वाले अथवा ( १ ) मन को मलीन करने वाले श्रौर (२) मन को निर्मल करने वाले । प्रथम प्रकार के मेले काम, कुतूहल एवं विविध प्रकार के विकारों को जागृत करते हैं। ऐमे मेने बाल जीवों को ही रूचिकर होते हैं। संसार में ऐसे - बहुत मेले देखे हैं और उन्हें देख कर मनुष्यों ने अपने मन मैले किये हैं । उनके फलस्वरूप संसार में भटकना पड़ा है । अब यदि जन्म-मरण के बन्धनों से छुट कारा पाना है तो मुक्ति का मेला कर् लो । कबीरदासजी ने भाव की भंग, मरम की काली मिर्च डाल कर पी थी और अपने हृदय में प्रेम की लालिमा उत्पन्न की थी । 13 ग्रान्नद आदि साधकों ने बन्धन काटने वाले मेले के स्वरूप को समझा उन्होंने नियम का नशा लिया। इससे उनका जीवन आन्नदमय बन गया जीवन के वास्तविक ग्रान्नद को प्राप्त करने के लिए आन्नद के समान ही साधना को अपनाता होगा । इसी में स्थायी कल्याण है
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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