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________________ जीवन का 'ब्रेक'- संयम आत्मा का स्वाभाविक गुण चैतन्य है । वह ग्रनन्त ज्ञान दर्शन का पुरंजपरमज्योतिर्मय श्रानन्दनिधान, निर्मल, निष्कलंक और निरामय तत्त्व है। किन्तु अनादिकालीन कर्मावरणों के कारण उसका स्वरूप ग्राच्छादित हो रहा हैं । चन्द्रमा मेघों से ग्रावृत होता है तो उसका स्वाभाविक ग्रालोक रुक जाता है, मगर उस समय भी वह समूल नष्ट नहीं होता। इसी प्रकार ग्रात्मा के सहज ज्ञानादि गुण आत्मा के स्वभाव हैं, ग्रावृत हो जाने पर भी उनका समूल विनाश नहीं होता । वायु के प्रबल वेग से मेघों के छिन्न-भिन्न होने पर चन्द्रमा का सहज आलोक जैसे चमक उठता है, उसी प्रकार कर्मों का श्रावरण हटने पर श्रात्मा के गुण अपने ने सर्गिक रूप में प्रकट हो जाते हैं । इस प्रकार जो कुछ प्राप्तव्य है, वह सब श्रात्मा को प्राप्त ही है । उसे बाहर से कुछ ग्रहण करना नहीं है । उसका अपना भण्डार क्षय और असीम है । बाहर से प्राप्त करने के प्रयत्न में भीतर का खो जाता है। यही कारण है कि जिन्हें अपनी निधि पाता है, वे बड़ी से बड़ी बाहर निधि को भी ठुकरा कर ग्रकिचन वन जाते हैं । चक्रवर्ती जैसे सम्राटों ने यही किया है और ऐसा किये बिना काम चल भी नहीं सकता । . वाह्य पदार्थों को ठुकरा देने पर भी ग्रन्दर के खजाने को पाने के लिए प्रयास करना पड़ता है । वह प्रयास साधना के नाम से ग्रभिहित किया गया भगवान महावीर ने साधना के दो ग्रांग बतलाए हैं- संयम और तप ।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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