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________________ [४०१. प्रयास नहीं किया गया। पश्चिम में इसी प्रकार का प्रयास दृष्टि गोचर होता : है। वहाँ एक सिद्धान्त को आधार मान कर उससे आगे का विचार किया गया है। वहाँ के चिन्तन में एक सिलसिला है, कड़ी है। - साधना को व्यावहारिक रूप मिलने से जीवन में ताकत आ जाती है, और असंभव भी संभव हो जाता है । एक कवि ने कहा है-..: कर लो सामायिक रो साधन, जीवन उज्ज्वल होवेला। तन का मैल हटाने खातिर, नितप्रति न्हावेला। मन पर मल चहुँ ओर जमा है, कैसे धोवेला । सामायिक से जीवन सुधरे, जो अपनावेला । 'निज सुधार से देश जाति, सुधरी हो जावेला । गिरत गिरत प्रतिदिन रस्सी भी, शिला घिसावेला । '; करत करत अभ्यास मोह का, जोर मिटावेला। .. रस्सी की बार-बार की रगड़ से शिला पर भी निशान पड़ जाते है। - 'रसरी आवत जात तें सिल पर परत निशान ।' इसी प्रकार साधना के बल से .. मनुष्य की प्रकृति भी घिस सकती है। सामायिक साधना के समय काम क्रोध श्रादि विकारों को नित्य 'टच' करो-अंकुश में लामो तो धीरे-धीरे वे विकार कम हो जाएंगे। अंगर प्रतिदिन विकारों पर चोट मारने का काम प्रारंभ किया गया तो जीवन में अवश्य ही मोड़ पाएगा। सामायिकसाधना करना अपने घर में रहना है। सामायिक से अलग रहता बेघरबार रहना है। सामायिकसाधना करना आत्मा का घर में यानाः । है। काम क्रोध आदि विकारों में परिणत होना पराये घर में जाना है। किन्तु साधना के लिए अन्तःकरण को तैयार किया जाना चाहिए। नित्य की साधना बड़ी बलशालिनी होती हैं । घंटा भर की साधना अगर नहीं हो सकती तो १०-१५ मिनिट श्रुतसाधना ही की जानी चाहिए। उससे भी शान्ति मिलेगी।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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