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________________ .. [३६५ तो घरू व्यवहार विगड़ जाता है और वह कुटुम्ब छिन्नभिन्न होकर बिखर जाता है। ...... - मानसिकः दशा:सन्तुलित न हो तो ज्ञानी-पुरुष-कुछ समय टाल कर वाद - में जवाव देता है। मन का सन्तुलन, शास्त्र, अध्यात्मशिक्षा सामायिकसाधन : .. - ही सिखा सकती है। ...... शम की स्थिति प्राप्त करने के लिए भी सामायिक साधना चाहिए। ... काम, क्रोध, मोह, माया आदि के कुसंस्कार इतने गहरे होते हैं कि उनकी जड़े उखाड़ने का दोर्घकाल तक प्रयास करने पर भी वे कभी-कभी उभर आते हैं। • अध्यात्मसाधना में निरत एकाग्र साधक भी कभी-कभी उनके प्रभाव में प्राजाता ... है। कभी कोई निमित्त पाकर तृष्णा या काम की आग भड़क उठती है ! यह . . प्राग अनादिकाल से जीव को सन्तप्त किये हुए हैं। इसे शान्त करने का उपाय क्या है ? सामायिक साधना रूपी जल के बिना यह ठंडी नहीं हो सकती। भट्टी . पर चढ़ाए. उबलते पानी को भट्टी से अलग हटा देने से ही उसमें शीतलता आती है । इसी प्रकार नाना विध मानसिक सन्तापों से सन्तप्त मानव सामायिक साधना करके ही शान्तिलाभ कर सकता है। .. प्राणी के अन्तर में कषाय की जो ज्वाला सतत प्रज्वलित रहती है, उसे शान्त किये बिना. वास्तविक शान्ति कदापि प्राप्त नहीं हो सकती। ऊपर का कोई उपचार वहाँ काम नहीं पा सकता। उसके लिए तो सामायिकसाधना ही उपयोगी हो सकती है। अनवरत साधना चालू रहने से स्थायी शान्ति का .. लाभ होगा। साधना ज्यों-ज्यों संबल होती जाएगी, साधक की प्रानन्दानुभूति . भी त्यों-त्यों ही बढती जाएगी। इसीलिए कहा गया है करलो जीवनः का उत्थान, . . .. करो नित समता रस-का पान ।.... नितप्रति हिंसादिक जो करते..." त्याग को मान कठिन जो डरते,
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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