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________________ ३८ ] संग्रह करके उत्पन्न कर दी है, यह कहना कठिन है । लेकिन यदि वह वास्तविक है तो भी उसके प्रतीकार का उपाय है और ऐसा उपाय है जिसकी हिमायत हजारों-लाखों वर्षों से भारत के ऋषि-मुनि करते आए हैं महीने में कुछ उपवास करने की भारतीय धार्मिक परम्परा रही है और कुछ लोग आज भी इसका पालन करते हैं। इसे व्यापक रूप दिया जाय तो सारी समस्या सहज ही हल हो । जायगी। मगर खाद्यान्न की समस्या को हल करना उसका आनुषंगिक फल ही .. समझना चाहिए । वास्तव में उपवास का असली फल आत्मशुद्धि है। आत्मशुद्धि से शुभ भाव की वृद्धि होती है, यात्मिक शक्ति बढ़ती है और उससे जीवन में : जागरण पाता है । संसार के प्राणी मात्र को आत्मवत् मानने की प्रेरणा देने वाली भूमि इस प्रकार के उदात्त और पावन उपायों को अपना कर ही अपनी विशेषता एवं गुरुत्ता कायम रख सकती है। . .............. दुःख की घड़ियों में मनुष्य को भय होता है। गांव गांव, नगर-नगर ... और झौंपड़ी-झोंपड़ी में नास्तिक लोग भी सोचने लगे थे कि न जाने इस अप्टग्रही . से क्या गजब होने वाला है ? लाखों का अन्न लुटाया गया, भजन-कीर्तन हुए। ये चीजें भय की भावना से हुई । उस समय केवल आशंकित भय था, मगर आज ..... वास्तविक भय उपस्थित हैं। हमारे नीतिकार कहते हैं- . . तावद् भयस्य भेत्तव्यं, यावद् भयमनागतम्। . .. आगतं तु भयं वीक्ष्य, नरः कुर्याचथोचितम् ।। भय जब उस्थित हो जाय तो रोने और किनारा काटने से काम नहीं चल सकता। विपत्ति के समय धीरज नहीं खोना चाहिए। धीरज खो देना अनर्थ . का कारण है । इससे विपत्ति शतगुण भीषण हो जाती है । कहा है ज्ञानी को दुख नहीं होता है, . . . ज्ञानी धीरज नहीं खोता है।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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