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________________ उसके उन्मूलन के लिए प्रयत्न किया जाय। ऐसा करने के लिए अहिंसा को धर्म समझना होगा-पोलिसी समझने से काम नहीं चलेगा। जैन मनीषियों ने अहिंसा के सम्बन्ध में तलस्पर्शी और अत्यन्त व्यापक चिन्तन किया है । उन्होंने असत्य, अस्तेय, अब्रह्मचर्य और मूर्छा को भी हिंसा का ही रूप स्वीकार किया है। राग, द्वेष क्रोध मान माया, लोभ आदि जितनी भी दुर्वृत्तियाँ हैं, सभी हिंसा के अन्तर्गत हैं । कभी इनसे पर का घात न मी होता हो तो भी आत्मिक स्वरूप का विघात तो होता ही है और यह स्वहिंसा है । ज्ञानी जन इसलिए स्वहिंसा से भी बचते हैं। उपासकदशांग सूत्र के चालू प्रकरण में मैथुन आदि के विषय में भगवान् महावीर स्वामी आनन्द प्रादि को संबोधित करके बता रहे हैं कि. कायिक मैथुन स्थूल मैथुन है । स्थूल मैथुन के त्यागी को पांच बातों से बचना चाहिए । स्वदार सन्तोष और स्वपति सन्तोष के पांच अतिचार जानने योग्य हैं किन्तु आचरण करने योग्य नहीं हैं। वे इस प्रकार हैं (१) इत्वरिका परिग्रहोतागमन-परिग्रहीता ( विवाहिता ) के साथ गमन करना साधारणतया दोष नहीं माना जाता, लौकिक दृष्टि से अनैतिक कृत्य भी नहीं गिना जाता किन्तु अल्प अवस्था की पत्नी से गमन करना अतिचार है - ब्रह्मचर्य व्रत संबंधी दोष है, क्योंकि ऐसा करना उसके प्रति अन्याय रखैल स्त्री के साथ गमन करना भी दूषण है। क्योंकि वह उसकी वास्तविक स्वकीया पत्नी नहीं है । जब तक रखैल स्त्री से कायिक सम्बन्ध न, हो तब तक अतिचार समझना चाहिए और कायिक सम्बन्ध होने पर अनाचार हो जाता है, अर्थात् कार से सम्बन्ध करने पर स्वदार सन्तोष व्रत पूरी तरह खंडित हो जाता है। . . (२) अपरिग्रहीतागमन-अविवाहिता- कुमारी अथवा वेश्या को पराई स्त्री न समझ कर उसके साथ गमन करना भी अतिचार है । वास्तव में वे सव स्त्रियां परकीया ही हैं जो स्वकीया (विवाहिता) नहीं हैं। उनके साथ संभोग
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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