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________________ : गुण ही वन्दनीय हैं। जिस में पूर्वोक्त दोपों के प्रात्यन्तिक क्षय से सर्वज्ञता एवं वीतरागता का पूर्ण विकास हो गया है, उसका नाम कुछ भी हो, देव के रूप में वह वन्दनीय है । . . गुरु वह है जिसने विशिष्ट तत्त्व ज्ञान प्राप्त किया हो और जो प्रारम्भ तथा परिग्रह से सर्वथा विरत हो गया हो। पापयुक्त कार्य कलाप प्रारंभ " कहलाता है और वाह्य पदार्थों का संग्रह एवं तज्जनित ममता को परिग्रह कहते .. हैं । जिसे आत्मतत्त्वं का समीचीन ज्ञान नहीं है, उसे शोधन करने की साधना का ज्ञान नहीं है, जो संसार की झंझटो से ऊब कर या किसी के बहकावे में प्राकर या क्षणिक भावुकता के वशीभूत होकर घर छोड़ बैठा है, वह गुरुः - यों तो ज्ञान अनन्त है, किन्तु गुरु कहलाने के लिए कम से कम इतना तो जानना चाहिए कि आत्मा का शुद्ध स्वरूप क्या है ? आत्मा किन कारणों से :: कर्म बद्ध होता है ? वन्ध से छुटकारा पाने का उपाय क्या है । धर्म-अधर्म, हिंसा .. अहिंसा एवं हेय उपादेय क्या है ? जिसने जड़ और चेतन के पार्थक्य को पहचान : लिया है, पुण्य-पाप के भेद को जान लिया है और कृत्य-अंकृत्य को समझ लिया : है, वह गुरु कहलाने के योग्य है, वशर्ते कि उसका व्यवहार उसके ज्ञान के... ... अनुसार हो:- अर्थात् जिसने समस्त हिंसाकारी कार्यों से निवृत होकर मोह-मायाः । - को तिलांजली दे दी हो। जो ज्ञानी होकर भी प्रारंभ-परिग्रह का त्यागी नहीं। है वह सन्त नहीं है। -...प्रबड़ नामक एक तापस था। वह सात 'सौ तापसों का नायक था। गेरुआ वस्त्र पहनता था । वह भगवान् महावीर के सम्पर्क में आया । उसने वस्तुतत्त्व को समझ लिया । उसका कहना था जब तक मैं पूर्ण त्यागी न बन जाऊँ तब तक दुनिया से वन्दन करवाने योग्य नहीं हूँ। कम करू ... और अधिक दिखलाऊँ तो क्या लाभ ? ऐसा करने से तो आत्मा का पतन - होता है वह कन्दमूल खाता था, किन्तु उसमें हिंसा नहीं है ऐसा नहीं समझता
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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