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________________ [ ३५७ . शुद्ध रखने का प्राशय यह है कि पाप को पाप समझना चाहिए-हिंसा को ... .. हिंसा मानना चाहिए और उससे बचने की भावना रखना चाहिए। ..... ... अाज की स्थिति में कोई विरला ही होगा-जिसके मस्तक पर ऋण का भार न हो । यद्यपि ऋण के भार को कोई अच्छा नहीं समभता, फिर भी . परिस्थिति विवश करती है और ऋण लेना पड़ता है। अगर कोई ऋण को . - बुरा नहीं समझता तो एक दिन ऐसा आएगा कि ऋण के भार से बुरी तरह :: दब जाएगा और उत्तराधिकारियों को अभिशाप बन कर जाएगा। कर्ज लेना क्या बुरा है, कर्ज तो सरकार भी लेती है, ऐसा समझने वाले की समझ उसी ...लए पा.. ... .. .. ...... ... . .. .:: .. ... ..... .. . हिंसा करना भी कर्ज लेने के समान बुरा है। आर्थिक ऋण से मृत्यु : छुटकारा दिला देती है किन्तु हिंसा का ऋण मृत्यु होने पर भी नहीं छूटता। वह परलोक में भी साथ रहता है और अनेकानेक भवों में बड़ी यातनाएं सहने .. पर ही उससे छुटकारा मिलता है। ............. .. .. .. ... ... ... ... .. ... बिना कर्ज लिए अपना काम चलाने वाले कम मिलेंगे, किन्तु यदि वे कर्ज की बुराई को बुराई समझते हैं तो वह बुराई भी उतनी भयानक नहीं होती। साधक हिंसा रूपी कर्ज को बुरा समझता है और सदैव हिंसा से बचने का प्रयास करता है । ऐसा व्यक्ति शुद्ध दृष्टि वाला कहा जाएगा। .. . -प्रानन्द इसी प्रकार की शुद्ध दृष्टि से सम्पन्न सद्गृहस्थ था। उसने महाप्रभु महावीर की सेवा में उपस्थित होकर पांच अणुव्रत और सात शिक्षा व्रत तथा गुण व्रत अंगीकार किए । उसने भगवान की पावन देशना को श्रवण ... करने और उसकी अनुमोदना करने में ही अपनी कृतार्थता नहीं समझी, वरन् । . . . अपनी शक्ति और परिस्थिति के अनुसार उसका प्राचररा भी किया। अनु मोदन के साथ यदि आचरण न किया जाय तो पाप का भार कैसे कम होगा। : कर्मबन्ध कैसे ढीला होगा। उसने बत ग्रहण करके भगवान के प्रति अपनी गाड़ी ...... - निष्ठा प्रकट की।.. . ....... .....
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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