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________________ ... [ ३५३ ग्वाला मिल गया और उसे ही निर्णायक बनाया गया । व्याकरण, ज्योतिष, - वेदान्त, नाहीत की बातें चलों। वृद्ध वादी अतिशय विद्वान् होने के साथ अत्यन्त लोक व्यवहार निपुण भी थे। उन्होंने लोकभाषा में संगीत सुनाया और सभी उपस्थित ग्वाले प्रसन्न हो गए। निर्णायक ग्वाले को भी प्रसन्नता हुई। उसने वाद का निर्णय कर दिया- प्राचार्य वृद्धवादी . विजयी हुए। ........... ......................... भड़ोंच की राजसभा में वृद्धवादी ने सिद्धसेन को पुनः पराजित किया। सिद्धसेन वृद्धवादी के शिष्य बन गए। ... सिद्धसेन अपने समय के प्रभावशाली विद्वान थे। विक्रमादित्य ने उन्हें अपना राज पुरोहित बनाया। सिद्धसेन की विद्वता से सन्तुष्ट होकर विक्रमादित्य ने उनसे यथेष्ट वर मांगने को कहा। मगर त्यागी सिद्धसेन को अपने लिए कुछ मांगना नहीं था। उन्हें कोई अभिलाषा नहीं थी। अतएव उन्होंने प्रजा का ऋणमुक्त करन का वर मागा। ....... . . राजपुरोहित होने के नाते सिद्धसेन पालकी में आने-जाने लगे । वृद्ध वादी को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने सिद्धसेन को सही राह पर लाने, का विचार किया। राजसी भोग भोगना साधु के लिए उचित नहीं है। इससे संयम दूषित हो जाता है। एक दिन वृद्धवादी छिरे रूप में भार वाहक के रूप - में वहां पहुँचे । जब सिद्धसेन पालकी में सवार हुए तो वृद्धवादी भी पालकी के उठाने वालों में सम्मिलित हो गए । सिद्धसेन उन्हें पहचान नहीं सके, मगर ... - उनकी वृद्धावस्था देख कर सहानुभूति प्रकट करते हुए वोले । ....... ... : भूरिभार भराक्रान्तः स्कन्धः किं बाधति तव ? .. .. अर्थात् अधिक भार के कारण क्या कन्धा दुःख रहा है ? सिद्धसेन के भाषा प्रयोग में व्याकरण संबंधी एक भूल थी। वृद्धवादी को वह बुरी तरह - चुभी और उन्होंने चट उत्तर दिया-भार के कारण कंधा उतना नहीं दुख.
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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