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________________ ... ३४८ 1. .. समाधिमरण के पांच दूषण हैं, जिनसे साधक बचता है। वे इत्त ... - प्रकार हैं .: (१) समाधिमरण की साधना अंगीकार करके पुत्र, कलत्र प्रादि की .चिन्ता करना दोष है । इस लोक सम्बन्धी किसी भी प्रकार की आकांक्षा का उदय होने से यह दोष होता है। .................... .. (२) परलोक सम्बन्धी कामना करना भी दोष है । मुझे इन्द्र का पद . प्राप्त हो जाए, मैं चक्रवर्ती बन जाऊं, यह अभिलाषा भी इस व्रत को दूषित - करती है। ... . ......... ......... ...... (३) समाधिमरण के समय अादर-सम्मान होते देख कर अधिक समय तक जीवित रहने की इच्छा करना भी तेष है। ... . (४) कष्ट से छुटकारा पाने के उद्देश्य से, घबरा कर शीघ्र मरण की इच्छा करना। .. ... (५) अच्छा विस्तर चाहना, तेल आदि की मालिश करना, विषयों की आकांक्षा करना! . . . . . . . . . .. अभिप्राय यह है कि अपने अन्तिम समय में भावना को निर्मल बनाये . रखने का प्रयत्न करना चाहिये। किसी भी प्रकार की विकारयुक्त विचारधारा को पास भी नहीं फटकने देना चाहिये। पूरी तरह समभाव एवं. विरक्तिभावः . जागृत करना चाहिए । विवेकशाली बत्ती जब साधना के मार्ग में सजग होकर कदम बढ़ाता है तो मरण के समय क्यों असावधानी बरतेगा ? व्रती निरन्तर : . इस प्रकार की भावना में रमण करता है निन्दन्तु नीनिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु, . लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् । . अचैव. वा मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ।।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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