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________________ स्खलना हो ही जाती है। उसका परिमाजन किया जायः। भगवान् महावीर रूपी हिमाचल से प्रवाहित होता चला आने वाला श्रुत-गंगा का यह परमपावन प्रवाह आपके साथ समाप्त नहीं हो जाना चाहिए। मुनि स्थूलभद्र को श्राप - अपनी ज्ञाननिधि अवश्य दीजिए । वे संघ के प्रतिनिधि हैं, अतएव स्थूलभद्र को - शान देना साधारण व्यक्ति को ज्ञान देना नहीं है, वरन् संघ को ज्ञान देना है। . अनुग्रह करके उनकी एक भूल को क्षमा की आंखों से देखिए और उन्हें चौदह . पूर्वो का ज्ञान अवश्य दीजिए। प्राचार्य भद्रबाहु महान् थे किन्तु संघ को वे सर्वोपरि मानते थे। जिन शासन में संघ का स्थान बहुत ऊंचा है। अंतएव संघ के प्राग्रह को अस्वीकार करने की कोई : गुजाइश न थी। उधर भद्रवाहु के मन में असन्तोष था। वे सोचते थे कि काल के प्रभाव से मुनियों के मन में भी उतनी सबलता नहीं रहने वाली है । अतएव यह ज्ञान उनके लिए भी हानिकारक ही सिद्ध होगा। इस प्रकार एक ओर संघ का आग्रह और दूसरी ओर अन्तःकरण का आदेश यो । प्राचार्य दुविधा में पड़ गए । सोच-विचार के पश्चात् उन्होंने मध्यम मार्ग .... ग्रहण किया । अपना निर्णय घोषित कर दिया कि अवशेष श्रु त का ज्ञान देंगे. किन्तु सूत्र रूप में ही वह ज्ञान दिया जाएगा, अर्थ रूप में नहीं । इस निर्णय . को सबने मान्य किया। आगम के दो रूप होते हैं-सूत्र और अर्थ । सूत्र मूल सामग्री रूप है .. और अर्थ उससे बनने वाला विविध प्रकार का भोजन। मूल सामग्री से नाना प्रकार के भोज्य पदार्थ तैयार किये जा सकते हैं। सर्वल एवं नीरोग व्यक्ति - वाफला जैसे गरिष्ठ भोजन को पचा सकता है किन्तु बालक और क्षीणशक्ति : व्यक्ति नहीं पचा सकता है। अर्थागम को पचाने के लिए विशेष मनोबल की आवश्यकता होती है । वह न हुआ तो अनेक प्रकार के अनर्थों की संभावना ... रहती है । अध्येता अगर व्यवहार दृष्टि को निश्चय दृष्टि समझ ले या निश्चय ... दृष्टि को व्यवहार दृष्टि समझ ले तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। उत्सर्ग को.. .. अपवाद या अपवाद को उत्सर्ग समझ लेने से भी अनेक प्रकार की भ्रमणाएं .. ...फैल सकती है। .... .
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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