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________________ बहुत बढ़ गई हैं । सो लिए चिन्ता का विषय विछोह में पत्नी, मृत्यु होनत के विको . उसके सरल सावन हैं । कषाय-पूर्वक मरना और हाय-हाय करते हुए मरना भी बालमरण है। आत्म हत्या के रुप में बालमरण की घटनाएं आम मल बहुत बढ़ गई हैं । सौराष्ट्र प्रान्त में तो ऐसी घटनाएं इतनी अधिक होती है कि वहाँ के मुख्य मंत्री के लिए चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। ग्रह कलह और घोर निराशा आदि इसके कारण होते हैं। पति के विछोह में पत्नी की और - पुत्र के वियोग में पिता की मृत्यु होना भी वालमरण है। भारत में पहले - प्रचलित सती प्रथा भी बालमरण का ही भयानक रूप था। इस प्रकार अनेक रूपों में यह बालमरण आज प्रचलित है। यह मरण कलाविहीन मरण है और पाप ... का कारण हैं। भगवान महावीर ने कहा-मृत्यु को कलात्मक स्वरुप प्रदान करता मानव का संव श्रेष्ठ कौशल है। जीवनगत विकारों को समाप्त करके, जीवन . . का शोधन करके और माया-ममता से अलग होकर जो हँसते हँसते मरता है, वह जीवन की कला जानता है। ती प्रथा भी . किसी सन्त का शिष्य बड़ा तपस्वी था तप करते-करते उसका शरीर क्षीण होगया अतएव उसने समाधिमरण अंगीकार करने का निर्णय किया। - गुरु से समाधिमरण की अनुमति मांगी। गुरु ने कहा-अभी समय नहीं आया है।। . शिष्य पुनः तप में निरत हो गया। उसने शरीर सुखा दिया। अस्थियां ही शेष रह गई। तब वह फिर गुरु के पास पहुंचा और समाभिमरणं की अनुमति मांगी। गुरु बोल अभी अवसर नहीं आया है। .......... ........ शिष्य फिर कठिन तपस्या करने लगा । सब इसे चलने फिरने ... में उठने-बैठने में महाँ. तक कि बोलने में भी कठिनाई होने लगी। उसने - फिर गुरु से अनुमति मांगी। गुरु ने नहा अभी अबसर नहीं पाया है। मलेखना करो! ................... ....... गुरु को वही पुराना उत्तर सुन कर शिषयं को इस बार रोष हो पाया।.. उसने अपनी उंगली तोड़ कर बतलाया कि-देखिये, मेरे शरीर में रुधिर नहीं रह गया है ! ...... ...
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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