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________________ दिन-रात अमर्याद जीवन-लालच, तृष्णा एवं संयम के कारण सन्तप्त । रहने वाला मनुष्य जब बारह व्रतों को धारण करता है जो परिग्रह प्रादि की मर्यादा के अन्तर्गत हो जाने से अभूतपूर्व शान्ति का अनुभव करने लगता है। उसकी असीम कामनाएँ सीमित हो जाती हैं, अनियंत्रित मन नियंत्रित हो जाता है, बिना किसी लगाम के स्वच्छन्द विचरण करने वाली इन्द्रिय संयत ... हो जाती हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है मानों माथे का बोझा उतर.. गया है। ___ यदि शासन यह नियम बना दे कि किसी भी मजदूर से वीस सेर से अधिक बोझ न उठवाया जाय तो मजदूरों को प्रसन्नता होगी। मजदूर के सिरः ..... की गठरी अगर मालिक रखले तो भी उसे प्रसन्नता का अनुभव होगा। भार... हल्का होने से प्रसन्नता होती है, शान्ति मिलती हैं, यह अनुभव सिद्ध तथ्य है। .:. . भगवान महावीर कहते हैं-पाप की गठरी को उतार फेंको तो तुम्हें.. शान्ति मिलेगी। नहीं उतार सकते तो उसे हल्की ही करलो। यह शान्ति प्राप्त करने का उपाय है, मगर संसारी जीव की बुद्धि विपरीत दिशा में चलती है । वह भार लादने का कुछ ऐसा अभ्यासी हो गया है कि भारहीन दशा के सुख की कल्पना ही उसके मन में उदित नहीं हो पाती। परिणाम स्वरूप वह . जिस भारयुक्त स्थिति में है उसी में मगन रहना चाहता है । किन्तु जो भारहीन या परिमित भारवाली दशा को अंगीकार कर लेते हैं. वे अपूर्व शान्ति अनुभव करने लगते हैं । उनका मन निराकुल हो जाता है। जिसका मानस मूढ़ बन गया है वह भार को भार नहीं समझ पाता .. और भारहीन दशा में आने से झिझकता है। मंगर समय-समय पर पापों की ___गठरी को इधर-उधर रखकरं मनुष्य को शान्ति प्राप्त करना चाहिए ।..... . . अनादिकाल से आत्मा भाराकान्त है। भाराकान्त होने से अशान्त है और अशान्ति में उसे सच्चे अानन्द की अनुभूति नहीं हो पाती। महावीर स्वामी ने श्रमणोपासक अानन्द को सच्चा आनन्द-मार्ग प्रदर्शित किया और
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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