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________________ [ ३२५ रखिए कि ज्ञान के मार्ग में बाधा डालने या रुकावट डालने से अशुभ कर्मों का बन्ध होता है और सेवा करने वाले लोग मन्दमति, गूगे बहिरे आदि होते हैं। .. ज्ञानार्जन में विघ्न उपस्थित करना ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धं का कारण है। :: प्राचार्य माहाराज की देशना पूरी हुई। सिंहदास श्रेष्ठी ने उनसे प्रश्न किया-महाराज, मेरी पुत्री की इस अवस्था का क्या कारण है ? किस कर्म के उदय से यह स्थिति उत्पन्न हुई है ?. ......... .. .. प्राचार्य ने उसर में बतलाया-इसने पूर्वजन्म में ज्ञानावरणीय कर्म का - गाढ़ बन्धन किया है । वृत्तान्त इस प्रकार है-जिन देव की पत्नी सुन्दरी थी। - वह पांच लड़कों और पांच लड़कियों की माता थी । सब से बड़ी लड़की का नाम लीलावती था। घर में सम्पत्ति की कमी नहीं थी। उसने अपने बच्चों पर इतना दुलार किया कि वे ज्ञान नहीं प्राप्त कर सके। . .. विवेकहीन श्रीमन्त अपनी सन्तति को प्रामोद-प्रमोद में इतना निरत बना देते हैं कि पठन-पाठन की ओर उनकी प्रवृत्ति ही नहीं होती। सत्समागम के अभाव में वे आवारा हो जाते हैं । आवारा लोग उन्हें घेर लेते हैं और कुपथ । की ओर ले जाकर उनके जीवन को नष्ट करके अपना उल्लू सीधा करते हैं । आगे चलकर ऐसे लोग अपने कुल को कलंकित करें तो आश्चर्य की बात ही ..क्या । .... ................................ . .... अपनी सन्तति के जीवन को उच्च, निर्मल और मर्यादित बनाने के लिए माता-पिता को सजग रहना चाहिए । उन्हें देखना चाहिए कि वे कैसे लोगों की संगति में रहते हैं और क्या सीखते हैं : इस प्रकार की सावधानी रख कर कुसंगति से बचाने वाले माता-पिता ही अपनी सन्तान के प्रति न्याय कर सकते हैं । सुन्दरी सेठानी के बच्चे समय पर पढ़ते नहीं थे । बहानेबाजी किया करते. और अध्यापक को उल्टा त्रास देते थे। जब अध्यापक उन्हें उपालम्भ देता और... दाटता तो सेठानी उस पर चिढ़ जाती । एक दिन विद्याशाला में किसी बच्चे को सजा दी गई तो सेठानी ने चण्डी का रूप धारण कर लिया। पुस्तकें चूल्हे में . .
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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