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________________ [३१७ पुनः उसकी आवृत्ति नहीं होगी। अपराध क्षमा करें और यदि उचित प्रतीत .. ... हो तो आगे की वाचना चालू रक्खें। प्राचार्य संभूति विजय ने मुझे आपका... शिष्यत्व स्वीकार करने का आदेश दिया था। उनकी दिवंगत श्रात्मा को वाचना पूर्ण होने से सन्तोष प्राप्त होगा। ..... स्थूलभद्र यद्यपि थोड़ी देर के लिए प्रमाद के अधीन होगए थे तथापि सावधान साधक थे। उन्होंने आत्मालोचन किया और अपने ही दोष पर उनकी दृष्टि गई । सच्चे साधक का यही लक्षण है। वह अपने दोष के लिए दूसरे को उत्तरदायी नहीं ठहराता । अपनी भूल दूसरे के गले नहीं मढ़ता । उसका अन्तः करण इतना ऋजु एवं निश्शल्य होता है कि कृत अपराध को छिपाने का विचार भी उसके मनमें नहीं आता। पैर में चुभे कांटे और फोड़ में पैदा हुए मवाद के बाहर निकलने पर ही जैसे शान्ति प्राप्त होती है उसी प्रकार सच्चा साधक .. अपने दोष का पालोचन और प्रतिक्रमण करके ही शान्ति का अनुभव करता है। इसके विपरीत जो प्रायश्चित्त के भय से अथवा लोकापवाद के भय से अपने दुष्कृत को दबाने का प्रयत्न करता है, वह जिनागम के अनुसार पाराधक नहीं, विराधक है। .. ... पूर्वगत श्र त का ज्ञान वास्तव में सिंहनी का दूध है। उसे पचाने के लिए बड़ी शक्ति चाहिए। साधारण मनोबल वाला व्यक्ति उसे पचा नहीं सकता और जिस खुराक को पचा न सके, उसे वह खुराक देना उसका : अहित करना है। इसी विचार से विशिष्ट ज्ञानी पुरुषों ने पात्र-अपात्र की विवेचना की है। : स्थूलभद्र के मनोवल में आगे के पूर्वाध्ययन के योग्य दृढ़ता की मात्रा .. पर्याप्त न पाकर प्राचार्य भद्रबाहु ने वाचना बंद कर दी। अन्य साधुओं ने भी . देखा कि प्राचार्य निर्वाध रूप से ज्ञानामृत की जो वर्षा कर रहे थे, वह अब बंद होगई है। सुधा का वह प्रवाह रुक गया है। यह देखकर समस्त संघ को भी दुःख हुआ। इसका कारण भी प्रकाश में आगया। श्रत की संरक्षा का महत्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित था, अतएव संघ अत्यन्त चिन्तित हुआ।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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