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________________ .: जिसने भोजन पकाना, पकवाना, खरीदना, खरीदवाना आदि प्रारम्भ सर्वथा त्याग दिया है, जो निरन्तर तप-संयम की आराधना में निरत है, जो . संयम-पालन के हेतु ही देह धारण के लिए आहार ग्रहण करता है, जिसने पक्षी - के समान संग्रह एवं संचय की इच्छा का भी त्याग कर दिया है, जो लाभ-:... - अलाभ में समभाव रखता है और अपने आदर्श जीवन एवं वचनों से जगत् । ... को शाश्वतं कल्याण का पथ प्रदर्शित करता है, वह दान का उत्कृष्ट पात्र है। . ऐसा सत्पात्र जिसे मिल जाए वह महान् भाग्यशाली है। .. सुपात्र को दान देना विष में से अमृत निकालना है ।. ग्रहस्थ प्रारम्भसमारम्भ करके दोष का भागी होता है किन्तु अपने निज के लिए किया हुआ वह दोष भी साधु को दान देने से महान् लाभ का परम्परा कारण बन जाता है। इस दृष्टि से बारहवें व्रत का विशेष महत्व है। बारहवें व्रत के भी पांच अतिचार हैं, जिनसे वचने पर ही व्रत का पुर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है । वे अतिचार निम्नलिखित हैं, जो ज्ञय हैं पर प्राचरणीय नहीं - .. (१) देय वस्तु को सचित्त पदार्थ पर रख देना-त्यागी जन पूर्ण अहिंसा . . परायण और प्रारम्भ के त्यागी होने के कारण ऐसी किसी वस्तु को ग्रहण नहीं करते जिनसे किसी भी छोटे या मोटे जीव की विराधना होती हो। अतएव दान देते समय दाता को विशेष सावधानी रखनी पड़ती है। गृहस्थ विवेक... शील न होगा तो वस्तु के विद्यमान होने पर भी दान का लाभ नहीं प्राप्त कर . ... सकेगा। सचित्त फल, फूल, पत्र, पानों आदि के ऊपर यदि खाद्य पदार्थ रखः । दिया जाता है तो उसे साधु नहीं ग्रहण करते, क्योंकि उससे. एकेन्द्रिय जीवों को आवात पहुँचता है । अतएव ऐसा करना साधु के लिए अन्तराय का कारण हो जाता है । गृहस्थ को हल्दी, मिर्च, धनिया प्रादि बहुत-सी चीजें रखनी पड़ती हैं पर सचित्त के साथ उन्हें नहीं रखना चाहिए । साधु को सोंठ चाहिए, वह सोंठ यदि सचित्त पदार्थ के साथ.. रक्खी है. तो साधु के लिए अन्तराय
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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