SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ में ही बुला लेता है तो अपने स्वीकृत व्रत का अतिक्रमण करता है क्योंकि ऐसा करने से व्रत का उद्देश्य भंग होता है। . .. (४) रूपानुपात:-मर्यादित क्षेत्र से बाहर के किसी व्यक्ति को बुलाने के अभिप्राय से अपना रूप-चेहरा दिखलाना भी अतिचार है। किसी प्रकार का..... इशारा करके काम करवा लेना भी इसीमें सम्मिलित है । पौषधशाला में बिस्तर.. नहीं आया या पानी नहीं आया। उसे मंगवाने के अभिप्राय से अपने आपको ..... दिखलाना या संकेत करना रूपानुपात है। . ......... .... .. (५) पुद्गल प्रक्षेपः:-मर्यादित क्षेत्र से बाहर के व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कंकर, पत्थर, रूमाल या ऐसी ही कोई अन्य वस्तु फेंकना और बाहर की वस्तु मंगवाकर काम में लाना भी अतिचार.. है। यद्यपि वह बाहर गया नहीं किन्तु बाहर जाने का जो प्रयोजन था उसे उसने पूरा कर लिया। ऐसा करने से व्रत के मूल उद्देश्य में बाधा उपस्थित हुई । अतएव व्रत का आंशिक खण्डन हो गया। उल्लिखित पाँच अतिचारों से बचने से ही देशावकाशिक व्रत को निर्मल ... रूप से पाला जा सकता है । इस व्रत का दायरा बहुत विशाल है। इसके अनेक रूप जो हो गए हैं, उसी से इसकी विशालता का अनुमान किया जा ' सकता है। ... ... .. .. . देशावकाशिक और सामायिक व्रत में क्या अंन्तर है ? इस प्रश्न का . उत्तर यह है कि साधक कार्यों का प्रारम्भ समारम्भ का त्याग इस व्रत में ... अनिवार्य नहीं है । इस व्रत को धारण करने वाला साधक अपने मर्यादित क्षेत्र के बाहर प्रारम्भ आदि का त्यागी होता है किन्तु मर्यादित क्षेत्र के भीतर प्रारम्भ का त्याग करना उसके लिए अनिवार्य नहीं है । सामायिक व्रत का.. . पालन करने वाले साधक के लिए सावध योग का त्याग करना आवश्यक है। ...... ... उसमें सम्पूर्ण पाप के त्याग का लक्ष्य होता है। सामायिक में देश सम्वन्धी कोई मर्यादा नहीं होती। सामायिक व्रत की आराधना के विषय में कहा .. गया है- ...... . गया है-. .. . ..
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy