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________________ २८० : .:. : गौतम स्वामी का भगवान महावीर के प्रति जो गुम राग था वह भगवान् के अन्तिम समय तक न छूट सका और परिणाम यह हुआ कि तवं तक उन्हें कैवल्य की प्राप्ति भी न हो सकी । भगवान् के निर्वाण के पश्चात् . . ही उनका राग दूर हुआ और राग दूर होते ही उन्होंने अरिहन्त अवस्था प्राप्त करली । उनका राग दूर होने में एक विशेष घटना कारण बन गई। घटना इस प्रकार थी। गौतम स्वामी भगवान् का आदेश पाकर समीपवर्ती किसी ग्राम में देवशर्मा को प्रतिवोधित करने गए हुए थे। उनके लौट कर आने से पूर्व ही भगवान् का निर्वाण हो गया । जो तीस वर्ष तक निरन्तर साथ रहा वह अन्तिम समय में विछुड़ गया। गौतम स्वामी के हृदय को इस घटना से चोट पहुँची। उन्होंने विचार किया-केवली होने के कारण भगवान् : अपने निर्वाणकाल को तो जानते थे, फिर भी चिरकाल के अपने सेवक को ... अन्तिम समय में पास न रहने दिया। मुझे अन्तिम समय की उपासना से वंचित कर दिया। यह विचार गौतम का अनुरागी मन कर रहा था और अनुराग जव प्रवल.होता है तो विवेक ओझल हो जाता है । किन्तु यह विचारधारा अधिक समय तक टिक नहीं सकी। तत्काल ही विचारों की लगाम विवेक ने थाम .... ली। प्रभु की वाणी उन्हें स्मरण हो आई-. . . .. . .परिसा ! तुमयेव तुम मित्त. ... : .. ....किं वहिया मित्तमिच्छसि। . ...वस उन्होंने सोचा-प्रभु ने स्वावलम्बन को शिक्षा देने के लिए मुझे .. अपने से पृथक किया है । निर्वाण जाते-जाते भी वे मुझे मूक शिक्षा दे गए हैं। अव उसी शिक्षा का आधार लेकर मुझे अपनी आत्मा की ही उपासना करनी चाहिए । बाहर की ओर देखने वाली दृष्टि को अन्दर की ओर फैर देना चाहिए.I. . . : ...... :: :: .. ... ... ... !: ... ... ... :: ..... : ...और उसी समय गौतम स्वामी की दृष्टि प्रात्मोन्मुख हो गई। बाहर .. के समस्त पालम्बनों का जैसे सद्भाव ही न रहा। इस प्रकार जबः उनकी ...
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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