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________________ २७२ मूर्खता है। ऐसा करने से वह कमजोर हो जाएगा। विनम्रता आदि सद्गुणों से पोषण न होने के कारण आत्मदेव दुर्बल हो जाता है। दिव्य गुणों का विकास न करने से आत्मा का दानव रूप प्रकट होता है। अतएव जीवन में सद्गुणों की सजावट करना चाहिए। .. आपको अपनी आत्मा में अमर पालोक प्रकट करता है, आध्यात्मिक भावना के द्वारा जीवन को चमकाना है। यही दीपावली पर्व का महान संदेश है। यह वाह्य सजावट तो पर्व के साथ ही समाप्त हो जाएगी। इससे जीवन .. सार्थक न होगा, आत्मा का किंचित् भी श्रेय न होगा। आत्मा के मंगल के लिए सम्यग्ज्ञान और सदाचार को जीवन में प्रश्रय देना चाहिए। ....- भगवान् महावीर की देशना को श्रवण कर श्रोता कृतकृत्य होगए। __इस पर्व को हमें मंगलमय स्वरूप प्रदान करना है, अन्यथा काल तो आता और जाता रहता है। वह टिककर रहने वाला नहीं । कौन जानता है ... कि अगली दीपावली मनाने के लिए कौन रहेगा और कौन नहीं ? अतएव आज.. आपको जो सुयोग प्राप्त हैं, उसका अधिक से अधिक लाभ उठाइए। अन्तःकरण : में पावन ज्ञान की प्रदीपमाला आलोकित कीजिए। अनन्त ज्योतिर्मय प्रात्मा .. की आवृत ज्योति को प्रकट कीजिए। ऐसा करने से ही इस पर्व की आराधना सफल होगी। ... .... . .........
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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