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________________ २५६] __ महात्मा ने उत्तर दिया-जैसा अवसर होगा, देखा जाएगा। पर सन्तमहात्मा परोपकार परायण होते हैं । वे आत्म-कल्याण के साथ पर-कल्याण को भी अपने जीवन का परम लक्ष्य मानते हैं । बल्कि यों कहना चाहिए कि परोप- . कार को भी वे आत्मोपकार का ही एक अंग समझते हैं। अतएव महात्मा भिक्षा के अवसर पर उनके घर पहुँचे। लड़के भिक्षा देने लगे तो वृद्धा ने . कहा-आज तो मुझे भी लाभ लेने दो। लड़के एक ओर हो गए और वृद्धा . महात्मा को आहार दान देने लगी। ___ महात्मा ने उससे कहा-बाई, तुम्हारे हाथ से हम तभी. भिक्षा ग्रहण करेंगे जब कुछ धार्मिक नियम ग्रहण करोगी। .. बुढ़िया नहीं चाहती थी कि महात्मा मेरे द्वार पर पधार कर खाली लौटें, अतएव उसने प्रतिदिन एक सामायिक करने का नियम ले लिया। महात्मा उसके हाथ से भिक्षा लेकर अपने स्थान पर चले गए। वृद्धा प्रतिदिन समय-असमय घड़ी भर साधन कर लेती थी। एक दिन भोजन से निवृत्त हो जाने के पश्चात् उसकी बहुएँ गाँव में इधर-उधर मिलने चली गई । चने भिगोये गये थे सो घर के बाहर चबूतरे पर सूख रहे थे। वृद्धा घर के बाहर सामायिक करने बैठी थी, अतएव बहुओं ने बाहर जाते . समय मकान का ताला लगा दिया और चाबी द्वार पर एक ओर लटका दी। ... संयोगवश उसके एक लड़के को पंसेरी की आवश्यकता पड़ी और वह ... _ उसे लेने के लिए घर आया। उसने दरवाजा बन्द देख कर वापिस लौटने का उपक्रम किया । बुढ़िया बैंठी-बैठी यह सब देख रही थी मगर सामायिक में होने .: से कुछ कहने में संकोच कर रही थी। किन्तु अन्त तक उससे रहा नहीं गया। उसने सोचा-लड़के को व्यर्थ ही चक्कर होगा और व्यापार के काम में बाधा पड़ेगी। इधर उसके मन में यह संकल्प-विकल्प चल ही रहा था कि अचानक - एक भैसा उधर आ निकला और चनों की ओर बढ़ने लगा।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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