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________________ [२४५ नये-नये रोग बढ़ने जा रहे हैं और अल्पायुष्कता भी बढ़ती जा रही है । फिर ॐ भी लोग अन्धाधुन्ध विलायती औषधों के प्रयोग से बाज नहीं आते। . .. बड़ी-बड़ी वस्त्र मिलों और कारखानों की स्थापना से प्रजाजनों की आजीविका छिन गई हैं । हजारों हाथ जो काम करने थे, उसे एक मशीन कर डालती है । बेरोजगारी की समस्या उलझती जा रही है । फिर भी दिन-अदिन नवीन कारखाने खुलते जाते हैं। उनके कारण महारम्भ और हिंसा की वृद्धि हो रही है। - जिन देशों में अहिंसा की परम्परा नहीं है, जिन्हें विरासत में अहिंसा के सुसंस्कार नहीं मिले हैं वहां यदि ऐसी वस्तुओं को प्रोत्साहन मिले तो उतने खेद और आश्चर्य की बात नहीं किन्तु भारत जैसा देश, जो सदैव अहिंसा का प्रेमी रहा है, हिंसाकारी वस्तुओं को अपनाए, तो कौनं संसार को अहिंसा पथ का प्रदर्शित करेगा ? अहिंसा का आदर्श उपस्थित करने की योग्यता सिवाय भारतवर्ष के अन्य किसी भी देश के में नहीं है । इस देश महर्षियों ने हजारों-लाखों ... वर्ष पहले से अहिंसा विषयक चिन्तन प्रारम्भ किया और उसे गम्भीर रूप दिया । वह चिन्तन आज भी उसी प्रकार उपयोगी है और कभी पुराना . पड़ने वाला नहीं है किन्तु आज इस देश के निवासी पश्चिम का अन्धानुकरण करने में ही गौरव समझते हैं। उचित यह है कि हम अपनी संस्कृति की छाप पश्चिम पर अंकित करें और उसे ऋषियों के सन्मार्ग पर लाएं। आज न केवल दवाइयों ही वरन् दूसरी बहुत-सी वस्तुएं भी पशुओं की हत्या करके निर्मित की जाती है । नरम चमड़े के नाना प्रकार के बैग, जूते आदि जीवित पशुत्रों का चमड़ा उतार कर उससे बनाये जाते हैं । यह कितनी भीषण ऋ रता है, शौकीन लोग ऐसी चीजों का उपयोग करके घोर हत्या के ... पाप के भागी बनते हैं । जीवन का ऐसा कोई कार्य नहीं जो ऐसी हिंसाजनित वस्तुओं के बिना न चल सके । अतएव ऐसी हिंसा को निरर्थक हिंसा की कोटि में सम्मिलित करना अनुचित नहीं । विवेकशील व्यक्ति सदैव इस प्रकार की हिंसा से बचेगा।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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