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________________ २३८] साथ पढ़े गए अल्पसंख्यक ग्रन्थ भी बहुसंख्यक ग्रंथों के पढ़ने का प्रयोजन पूरा कर देते हैं। इसके विपरीत, शिक्षक बोलता गया शिष्य सुनता गया और इस प्रकार बहुसंख्यक ग्रन्थ पढ़ लिए गए तो भी उनसे अभ्यास का प्रयोजन पूर्ण नहीं होता। इस प्रकार पढ़ने वाला दीर्घ काल में भी विद्वान् नहीं बन पाता। ___ कई साधु-सन्त यह सोचते हैं कि इस समय पढ़ाने वाले का सुयोग मिला हैं तो अधिक से अधिक समय लेकर अधिक से अधिक ग्रन्थ वांच कर समाप्त कर दें। बाद में उन पर चिन्तन करेंगे, उनका अभ्यास कर लेंगे और पक्का कर लेंगे। किन्तुं इस प्रकार की वृत्ति से अधिक लाभ नहीं होता। जल्दी-जल्दी में जो सीखा जाता है वह धारणा के अभाव में विस्मृति के अधिकार में विलीन हो जाता है और जो समय उसके लिए लगाया गया था वह वृथा चला जाता है । अतएव सुविधा के अनुसार जो भी अध्ययन किया जाय वह ठोस होना चाहिए । जितना-जितना पचतो जाय उतना ही उतना नवीन सीखना चाहिए। ऐसा करने से अधिक लाभ होता है । विद्वानों में यह कहावत प्रचलित है कि थोड़ा-थोड़ा सीखने वाला थोड़े दिनों में और बहुत-बहुत सीखने वाला बहुत : दिनों में विद्वान् बनता है । इस कहावत में बहुत कुछ तथ्य है । जैसे एक दिन में कई दिनों का भोजन कर लेने का प्रयत्न करने वाले को लाभ के बदले हानि उठानी पड़ती हैं, उसी प्रकार बहुत-बहुत पढ़ लेने किन्तु पर्याप्त चिन्तन मनन न करने से और कण्ठस्थ करने योग्य को कण्ठस्थ न करने से लाभ नहीं होता। अतः ज्ञानाभ्यास में अनुचित उतावल नहीं करना चाहिए। ___मुनि स्थूलभद्र ने अधैर्य को अपने निकट न पटकने दिया। वे स्थिर चित्त से वहीं जमें रहे और अभ्यास करते रहे। उन्होंने विचार किया-:: गुरुजी के आदेश से जिज्ञासु होकर मैं यहां आया हूं, अंतएव वाचना देने वाले की सुविधा को अनुसार ही मुझे ज्ञान ग्रहण करना चाहिए। सुपात्र समझकर भद्रबाहु ने स्थूलभद्र को अच्छी शिक्षा दी। शेष साधु संभूति विजय के पास चले गए। उनके चले जाने पर भी स्थूलभद्र निराश या उदास नहीं हुए । सच्चे जिज्ञासु होने के कारण उन्होंने कष्टों की परवाह
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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