SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . [२३५ प्रक्षालनाद्धि पंकस्य दूरादस्पर्शनं वरम् । . . ... पहले कीचड़ लगाकर फिर उसे धोने की अपेक्षा कीचड़ से दूर रहना और उसे न लगने देना ही उत्तम है। . भारत की संस्कृति प्रात्मप्रधान हैं। उसकी सम्पूर्ण दार्शनिक विचारधारा और प्राचार नीति आत्मा को ही केन्द्र बिन्दु मानकर चली है । पाश्चात्य देशों के प्राचार-विचार में यह बात नहीं है। उनकी दृष्टि सदा बहिर्मुख रहती है। भारतीय जन के मानस में प्रात्मा सम्बन्धी विचार रहता ही हैं, इस कारण वे उपासना, संध्या आदि के रूप में अन्तः शुद्धि की ओर कदम बढ़ाते हैं। पश्चिम वाले घर एवं फर्नीचर की हालत ऐसी रखते हैं जैसे -कलं ही दिवाली मनाई गई हो। दोनों दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर हमें सीख लेनी है और सोचना हैं कि मनुष्य के लिए शाश्वत सुख और शान्ति का मार्ग क्या है ? . मनुष्य को स्वभावतः एक अनमोल रत्न प्राप्त है जो चिन्तामणि + से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। अगर उसका सही उपयोग किया जाय तो कहीं और कभी भी ठोकर खाने की संभावना नहीं रहती। वह अनमोल रत्न है. विवेक ! यदि विवेक से काम लिया जाय तो पाप के भार से भारी नहीं बनना पड़ेगा। यही नहीं, विवेक के प्रकाश में इहलोक सम्बन्धी जीवन यात्रा भी सानन्द और सकुशल सम्पन्न होती है । अतएव मनुष्य का कर्तव्य है. कि वह सदैव विवेक की दिव्य ज्योति को जगमगाता रहे, उसे बढ़ाता रहे और उसी के प्रकाश में चले । विवेक सुख और शांति की एक मात्र कुजी है। यही मानव की विशेषता है। विविध प्रकार की जीवसृष्टि में मनुष्य को जो सर्वोच्च पद प्राप्त है उसका एक मात्र प्रधान कारण विवेक है । विवेक ही मानवे की शोभा है। आज भारत अपनी मूल दृष्टि और संस्कृति से विचलित होता जा रहा है। वह ज्ञानोपासना की अपेक्षां लक्ष्मी पूजा को अधिक महत्व प्रदान करने लगा है । समाज में लक्ष्मी को इतना अधिक महत्व प्राप्त हो गया है कि ज्ञान,
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy