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________________ २२४:] . वशीभूत होकर, शृंगार के कारण अथवा दूसरों को प्रसन्न करने के लिए ऐसी बात करना कि जिससे भोग की प्रवृत्ति बढ़े या कामवासना जागृत हो तो वह बेमतलब पाप करना है। हिन्दी साहित्य की रीतिकालीन रचनाओं का अध्ययन करने से पता चलता है कि उस काल में श्रीमन्तों-राजाओं, महाराजाओं सामन्तों आदि का मनोरंजन करने के लिए कविगण कामवासनावर्धक काव्य लिखा करते थे। आज भी प्रात्मतत्त्व की बातों से राजी करने की क्षमता न होने से अपने श्रीमन्त स्वामियों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से इग्लेण्ड, अमेरिका, एशिया आदि देशों की महिलाओं का वर्णन तथा अन्य शृांगारिक वर्णन किया जाता है। ठकुरसुहाती करते हुए कहते हैं आपके अन्तःपुर के समान अन्तःपुर अन्यत्र कहीं नहीं देखा, आपके वैभव की सदृशता कोई नहीं कर सकता। इत्यादि बातें कह कर लोगों को प्रसन्न करते हैं ऐसी कन्दर्प कथाओं या काम की वृद्धि करने वाली कथाओं या हास्यकथाओं में कुछ नमक-मिर्च लगाकर गढ़ना पड़ता है। और जब ऐसी बातों को अभिनय के साथ कहा जाता है तो वृद्ध एवं उदास व्यक्ति भी एक वार खिलखिला उठते हैं। .. प्रश्न उठता है-प्रसन्न करने से लाभ क्या हुआ ? शृंगार भाव या कामवासना को जागृत करने के लिए झूठ बोलने से कौनसा कार्य सिद्ध हुआ ? केवल थोड़ी देर का विकृत विनोद हुआ और लाभ कुछ भी नहीं मिला ! ऐसी स्थिति में इस प्रकार की निरर्थक चेष्टानों द्वारा आत्मा को कलुषित करने की क्या आवश्यकता है ? . . आधुनिक युग में चित्रपटों का अत्यधिक प्रचार हो रहा है। मगर अधिकांश चित्रपट गंदी और अश्लील बातों एवं चेष्टानों से परिपूर्ण होते हैं । इन चित्रपटों को देखते-देखते लोगों का मानस बहुत ही विकृत हो गया है । अाधुनिक समाज में जितनी बुराइयां आई हैं उनमें से अधिकांश के लिए ये चित्रपट उत्तरदायी हैं। कोमलवय वालकों और नवयुवकों के समक्ष जब निर्लज्जतापूर्ण, अश्लील, मर्यादा को नष्ट करने वाले, वासनादिवद्ध क. और
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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